चित्तौड़गढ़ जिले में कस्तूरबा गांधी बालिका आवासीय विद्यालयों से जुड़ा टेंडर विवाद सामने आया है। समग्र शिक्षा अभियान के तहत जिले के 21 कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालयों में मैनपावर की जरूरत को लेकर फरवरी में टेंडर प्रक्रिया की गई थी। इस प्रक्रिया के तहत करीब 150 पदों पर कर्मचारियों की नियुक्ति की जानी थी, जिसमें वार्डन, अकाउंटेंट कम क्लर्क, हेड कुक, सहायक कुक, चौकीदार, चपरासी और स्वीपर जैसे पद शामिल हैं। टेंडर प्रक्रिया के बाद तमाम तकनीकी और वित्तीय मूल्यांकन के आधार पर 'डिंग मैनपावर' नामक फर्म को कार्य आदेश जारी किया गया, लेकिन अब तक इस फर्म को काम शुरू करने की अनुमति नहीं दी गई है। इसकी जगह पुरानी फर्म से मौखिक तौर पर काम लिया जा रहा है। यह काम बिना किसी लिखित आदेश के किया जा रहा है, जिससे न सिर्फ प्रक्रिया की पारदर्शिता पर सवाल उठ रहे हैं, बल्कि कर्मचारियों को भी नुकसान उठाना पड़ रहा है।
कर्मचारियों को कम वेतन, पीएफ व ईएसआई कटौती भी कम
टेंडर की शर्तों के अनुसार कर्मचारियों को 7410 से 9333 रुपए तक वेतन दिया जाना था। लेकिन उन्हें मात्र 4000 से 6500 रुपए का भुगतान किया जा रहा है। इससे कर्मचारियों को आर्थिक नुकसान हो रहा है। साथ ही उनकी पीएफ व ईएसआई कटौती भी कम की जा रही है, जिसका असर उनके भविष्य की सुरक्षा पर भी पड़ रहा है।
जब तक नई फर्म को लेकर अपील पर अंतिम निर्णय नहीं हो जाता, तब तक कर्मचारियों को पुरानी दर पर ही वेतन दिया जाएगा। उनका कहना है कि जैसे ही निर्णय होगा, कर्मचारियों को उनका बकाया दे दिया जाएगा। हालांकि, इस मामले में जिस अपील पर निर्णय होना है, उस पर अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। प्रमोद दशोरा ने पहले कहा था कि दो दिन में इस विवाद का समाधान कर दिया जाएगा, लेकिन अब 13 दिन बीत चुके हैं और कोई समाधान नहीं निकला है।
जयपुर से निर्णय लंबित, कोरम के अभाव में बैठक में देरी
प्रमोद दशोरा ने बताया कि उन्होंने इस पूरे मामले की जानकारी शिक्षा परिषद जयपुर को भेज दी है और वहां से भी उनके द्वारा जानकारी मांगी गई है। परिषद की बैठक के लिए आवश्यक कोरम पूरा नहीं हो पाया, जिसके कारण निर्णय में देरी हो रही है। सभी सदस्यों के उपस्थित होते ही बैठक आयोजित कर जल्द ही निर्णय लिया जाएगा। इस मुद्दे पर जब समसा के कार्यक्रम अधिकारी नरेंद्र शर्मा से बात की गई तो उन्होंने पल्ला झाड़ते हुए कहा कि यह मामला सीडीईओ के अधीन है और उनका इससे कोई लेना-देना नहीं है। इस एक टेंडर के दो फॉर्म के बीच कर्मचारी दुविधा में पड़ रहे हैं।
बिना आदेश पुरानी फर्म के तीन माह के बिल पास
सबसे हैरानी की बात यह है कि बिना किसी लिखित आदेश के पुरानी फर्म से काम कराया जा रहा है और उसके तीन माह के बिल भी पास कर दिए गए हैं। यह प्रक्रिया नियमों के विरुद्ध मानी जा रही है और इसमें भारी अनियमितता की आशंका है। दैनिक भास्कर ने इस बारे में डिजिटल खबर प्रकाशित कर इस मुद्दे को सामने लाया, जिसके बाद यह मामला चर्चा में आया।
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