बीते कुछ दिनों में कांग्रेस और बीजेपी के बीच कथित 'वोट की चोरी' को लेकर आरोप-प्रत्यारोप लगाए जा रहे हैं. लेकिन सवाल यह है कि मतदाता सूची में नाम जोड़ने या हटाने के लिए वास्तव में कौन ज़िम्मेदार है?
यह ज़िम्मेदारी मतदाताओं की है या चुनाव आयोग की? या फिर यह काम राजनीतिक दलों का है जिन्हें चुनाव से एक महीने पहले मतदाता सूची का प्रिंट आउट दिया जाता है, वो भी इस डिजिटल दौर में.
ज़मीनी पड़ताल में इसी तरह के सवालों से हमारा सामना हुआ.
लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने बेंगलुरु सेंट्रल लोक सभा क्षेत्र का मुद्दा उठाते हुएकुछ सवाल पूछे थे. राहुल गांधी विशेष रूप से इस लोकसभा क्षेत्र की महादेवपुरा विधानसभा सीट की मिसाल दे रहे थे.
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कथित 'वोट चोरी' के कांग्रेस ने दो उदाहरण दिए हैं. पहला मामला महादेवपुरा विधानसभा सीट के मकान संख्या 35 का है, जहाँ मतदाता सूची के अनुसार 80 मतदाता हैं.
मुनि रेड्डी गार्डन में मकान नंबर 35 का दौरा करने पर बीबीसी हिंदी को वहाँ कई छोटे-छोटे एक कमरे वाले मकान दिखाई दिए.
ये कमरे क़रीब आठ गुणा आठ फ़ुट के थे. इनमें एक रसोईघर भी है, जहाँ सिर्फ़ एक व्यक्ति खड़ा होकर काम कर सकता है. पास ही एक बाथरूम है.
आस-पास के सभी मकान लगभग एक ही साइज़ के हैं.
- राहुल गांधी ने वोटर लिस्ट में गड़बड़ी के लगाए आरोप, ईसी बोला- लिखित में दें या फिर...

इस प्रॉपर्टी के मालिक के भाई, गोपाल रेड्डी बताते हैं कि इन घरों में देश के अलग-अलग हिस्सों से आए प्रवासी मज़दूर रहते हैं.
रेड्डी बताते हैं, "हम इन्हें लेबर क्लास शेड कहते हैं. हर तीन से छह महीने में ये लोग यहाँ से शिफ़्ट होते रहते हैं. ये लोग यहाँ आते हैं तो कंपनी रेंटल एग्रीमेंट माँगती है. अगर ये लोग एग्रीमेंट नहीं देते, तो इन्हें नौकरी नहीं मिलती. फिर उन्हें वोटर आईडी मिलती है और जब उनकी कमाई बढ़ जाती है तो वे यहाँ से दूसरी जगह चले जाते हैं. राहुल गांधी एक नेशनल लीडर हैं. ये लोग उन्हें गुमराह करके उनका अपमान कर रहे हैं."
हम इन घरों में से एक में रहने वाले दीपांकर सरकार से मिले, जो पश्चिम बंगाल से यहाँ आए हैं.
वह अपनी पत्नी और पाँच साल के बेटे के साथ इस घर में रहते हैं. हालांकि वह पिछले एक साल से बेंगलुरु में रह रहे हैं, लेकिन एक महीने पहले ही दीपांकर महादेवपुरा आए हैं क्योंकि जिस कंपनी में वह काम करते हैं, वहाँ से उनका तबादला हो गया है.
दीपांकर सरकार ने बताया, "मैं फ़ूड डिलीवरी एजेंट का काम करता हूँ, इसलिए मैंने यह कमरा किराए पर लिया क्योंकि मैं बेलंदूर ज़ोन में काम करता हूँ. मैं यहाँ कब तक रहूँगा, मुझे नहीं पता."
दीपांकर के पड़ोस में रहने वाले शख़्स पिछले 12 साल से बेंगलुरु में काम कर रहे हैं.
उन्होंने नाम न बताने की शर्त पर कहा, "मैं यहां वोट नहीं देता. मैं पश्चिम बंगाल जाता हूँ और वहां वोट देता हूँ. जो कहा जा रहा है, वह सही नहीं है. हममें से कई लोग यहाँ वोट नहीं देते. हम अपने राज्य वापस चले जाते हैं."
'वोट की चोरी' का दूसरा उदाहरण एक छोटी शराब फ़ैक्ट्री (माइक्रोब्रूअरी) से दिया जा रहा है. यहाँ आरोप लगाया गया है कि इस पते पर पंजीकृत मतदाताओं की संख्या 68 है. यहाँ काम कर रहे एक अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर बीबीसी हिन्दी को बताया कि फ़ैक्ट्री का मालिकाना हक़ हाल ही में बदला है.
लेकिन उन्हें यक़ीन है कि प्रवासी मज़दूर कम समय के लिए काम करते हैं.
कांग्रेस का अभियानसाल 2024 में इसी लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस उम्मीदवार मंसूर अली ख़ान ने चुनाव लड़ा था. वह नहीं मानते कि कांग्रेस की माँग में धार नहीं है.
उनका कहना है, "आप इन्हें ग़लत उदाहरण क्यों कह रहे हैं? मुनि रेड्डी गार्डन में 80 वोट पंजीकृत हैं. माइक्रोब्रूअरी में 68 मतदाता हैं. हमारा सवाल यह है कि एक कमरे में इतने सारे लोगों का पंजीकरण कैसे हो सकता है? ब्रूअरी एक व्यावसायिक संस्था है. इस जगह वोट कैसे दर्ज हो गए? बूथ लेवल अधिकारी क्या कर रहे हैं? हम चुनाव आयोग से स्पष्ट मतदाता सूची की माँग कर रहे हैं... जब हम मतदाता सूची में ख़ामियों को उजागर करते हैं, तो चुनाव आयोग चुप क्यों रहता है?"
मंसूर अली ख़ान लोकसभा चुनाव में 32,707 मतों से चुनाव हार गए थे. यहाँ से भाजपा के पीसी मोहन ने 2009 के बाद सभी चारों लोकसभा चुनाव जीते हैं.
यह वही लोकसभा सीट है, जहाँ प्रकाश जावड़ेकर और पीयूष गोयल जैसे भाजपा नेता उत्तर, मध्य और पूर्वी राज्यों से आने वाले लोगों को संबोधित करते हुए रैलियाँ करते हैं.
महादेवपुरा-व्हाइटफ़ील्ड और उसके आसपास आईटी क्षेत्र की तरक्की ने उत्तरी, मध्य और पूर्वी राज्यों से बड़ी संख्या में लोगों को आकर्षित किया है. व्हाइटफ़ील्ड को बेंगलुरु में इलेक्ट्रॉनिक्स सिटी के बाद दूसरा सबसे बड़ा सॉफ़्टवेयर उद्योग केंद्र माना जाता है.
पढ़े-लिखे लोगों के अलावा दूसरे राज्यों से यहाँ आकर छोटे-मोटे काम करने वाले लोग भी इस जगह पर रहते हैं.
बीजेपी का तर्कवरथुर विधानसभा क्षेत्र से अलग करके बनाए गए महादेवपुरा आरक्षित विधानसभा क्षेत्र में भाजपा नेता अरविंद लिम्बावली का दबदबा है.
लिम्बावली यहाँ से तीन बार चुनाव जीत चुके हैं. साल 2023 में उनकी पत्नी ने इस सीट से जीत हासिल की थी.
अरविंद लिम्बावली तीन व्यक्तियों का उदाहरण देते हैं. इनमें से दो व्यक्ति दूसरी जगह पढ़ाई और काम करने के बाद बेंगलुरु स्थित कंपनियों में काम करने आए थे. तीसरी एक बुज़ुर्ग महिला है, जिसका पंजीकरण एक से ज़्यादा बूथों पर हुआ है.
लिम्बावली ने कहा, "मैंने इसकी जाँच की. उनमें से एक व्यक्ति लखनऊ का है. उसे मुंबई में नौकरी मिल गई थी, इसलिए वह वहाँ गया और वोट दिया. फिर उसे बेंगलुरु में नौकरी मिल गई और वह यहाँ किराए के मकान में रहने लगा. विधानसभा चुनाव के दौरान उसने उसी पते से वोट दिया. फिर लोकसभा चुनाव आते-आते वह एक अपार्टमेंट में शिफ़्ट हो गया. कांग्रेस उसे भी चोर बना रही है."
उन्होंने यह भी बताया कि चामराजपेट और शिवाजीनगर जैसे निर्वाचन क्षेत्रों में भी ग़लत पते और एक ही नाम पर कई वोट जैसे मामले सामने आए हैं. इन क्षेत्रों से कांग्रेस के उम्मीदवार चुने गए हैं.
लिम्बावली कहते हैं, "वे चोर नहीं हैं, हम हैं? उन्हें (राहुल गांधी) समझना चाहिए और पूछताछ करनी चाहिए. राहुल गांधी विपक्ष के नेता हैं. उन्हें इस मुद्दे पर थोड़ी समझ दिखानी चाहिए. हम जानते हैं कि आपकी छवि अच्छी नहीं है, लेकिन अगर आप कोशिश करेंगे तो इसमें थोड़ा सुधार हो सकता है."
आरोपों पर क्या बोले स्थानीय लोगइस निर्वाचन क्षेत्र के कुछ मतदाता राहुल गांधी के आरोपों को पूरी तरह से ख़ारिज करते हैं. कुछ का कहना है कि लोग यहाँ वोट तो करते ही हैं, साथ ही वे अपने-अपने राज्यों में भी वोट देने जाते हैं.
महादेवपुरा के एक दुकानदार कृष्णा ने बीबीसी हिंदी से कहा, "राहुल गांधी जो कह रहे हैं, वह सच नहीं है. मुझे अरविंद लिम्बावली पर पूरा भरोसा है. वह धोखा नहीं करते."
इलाक़े के वरिष्ठ नागरिक मुनि रेड्डी ने कहा कि यह सब राजनीति के अलावा कुछ नहीं है. मुनि रेड्डी बताते हैं, "सारे आरोप बेबुनियाद हैं. अधिकारी ज़िम्मेदार लोग हैं. सिर्फ़ अधिकारियों को दोष देना ठीक नहीं है. वे कह रहे हैं कि चोरी हुई है. लेकिन कैसे? आप ही बताइए."
एक स्थानीय निवासी शशिकला ने कहा, "यहाँ आने वाले लोग किराए पर मकान लेते हैं. वे यहाँ वोट देते हैं और अपने गाँव जाकर भी वोट देते हैं."
लेकिन एक स्थानीय स्टोर के मैनेजर दर्शन ने कहा, "यह स्पष्ट है कि ये फ़र्ज़ी मतदाता हैं, इसलिए इन्हें सूची से हटाना ही बेहतर होगा."
कांग्रेस नेता मंसूर अली ख़ान तीन गंभीर सवाल उठाते हैं, "चुनाव आयोग चुप क्यों है? जब हम चुनाव आयोग से कोई सवाल पूछते हैं, तो भाजपा उसका बचाव क्यों करने आती है? चुनाव आयोग भाजपा का पक्ष ले रहा है."
राजनीतिक तर्कों को एक तरफ़ छोड़ भी दें, तो भी इस सारे मामले में चुनाव आयोग पर सवाल तो उठे हैं.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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