"आम आदमी पार्टी इंडिया गठबंधन का हिस्सा नहीं है."
आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने समाचार एजेंसी पीटीआई के साथ बातचीत में यह टिप्पणी की है.
संजय सिंह की टिप्पणी ऐसे समय पर आई है जब शनिवार यानी 19 जुलाई को संसद के मॉनसून सत्र से पहले 'इंडिया' गठबंधन की बैठक होनी है.
इससे पहले 'इंडिया' गठबंधन ने 'ऑपरेशन सिंदूर' के मुद्दे पर संसद का विशेष सत्र बुलाने के लिए संयुक्त पत्र लिखा था.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़, आम आदमी पार्टी ने तब भी विपक्षी दलों के इस फ़ैसले से किनारा कर लिया था. पार्टी ने इसके लिए कांग्रेस को ज़िम्मेदार ठहराया था.
जानकारों का कहना है कि आप ने 'इंडिया' गठबंधन से बाहर निकलने का फ़ैसला लोकसभा चुनाव में असफलता, रणनीतिक मतभेदों और महत्वाकांक्षाओं के कारण लिया है.

संजय सिंह के बयान में कांग्रेस के प्रति नाराज़गी साफ़ देखी जा सकती है.
संजय सिंह का कहना है, "इंडिया गठबंधन अपनी बैठक करके जो निर्णय करना चाहता है वह ले. इंडिया गठबंधन कोई बच्चों का खेल नहीं है. आप बताइए, उन्होंने लोकसभा चुनाव के बाद कोई मीटिंग की है? उस गठबंधन को आगे बढ़ाने की कोई पहल की?"
गठबंधन में कांग्रेस की भूमिका पर सवाल उठाते हुए संजय सिंह कहते हैं, "कभी अखिलेश यादव के ख़िलाफ़ कोई टिप्पणी, कभी उद्धव ठाकरे के ख़िलाफ़ टिप्पणी, कभी ममता बनर्जी के ख़िलाफ़ कोई टिप्पणी. इंडिया गठबंधन जिस रूप में एकजुट होकर चलना चाहिए था, उसका सबसे बड़ा दल कौन है? कांग्रेस पार्टी है. कांग्रेस पार्टी ने सबसे बड़े दल की भूमिका निभाई क्या? सबसे बड़ा सवाल यह है."
हालांकि, कांग्रेस ने आप के इस रुख़ पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है.
'इंडिया' गठबंधन की आख़िरी बैठक जून, 2025 में हुई थी. तब विपक्षी दलों ने मिलकर 'ऑपरेशन सिंदूर' के विषय पर संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग की थी.
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आम आदमी पार्टी साल 2011 में हुए अन्ना आंदोलन की उपज है, जो उस समय की कांग्रेस सरकार के ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन था. पार्टी ने ख़ुद को बीजेपी और कांग्रेस दोनों से अलग, एक नई और ईमानदार राजनीतिक ताक़त के तौर पर पेश किया.
लेकिन 2024 में 'इंडिया' गठबंधन में शामिल होने के बाद आप का यह स्टैंड पीछे चला गया जिसमें वह बीजेपी और कांग्रेस दोनों से समान दूरी बनाए रखती थी.
यह रणनीतिक समझौता पार्टी के लिए नुक़सानदायक साबित हुआ. लोकसभा चुनावों में झटका लगने के बाद असली झटका 2025 के दिल्ली विधानसभा चुनावों में लगा, जो आप का सबसे मज़बूत गढ़ माना जाता था.
2015 और 2020 में 60 से ज़्यादा सीटें जीतने वाली पार्टी सिर्फ़ 22 सीटों पर सिमट गई. अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया और सत्येंद्र जैन जैसे बड़े नेता भी अपनी सीटें हार गए.
आप ने हार के लिए कांग्रेस की सक्रिय भूमिका को एक बड़ा फ़ैक्टर बताया था, जबकि कांग्रेस का कहना था कि वह मज़बूती से विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए स्वतंत्र है.
दिल्ली चुनाव से कुछ महीने पहले हरियाणा में चुनाव हुए थे. यहां कई सर्वे में कांग्रेस को बढ़त दिखाई गई थी. लेकिन नतीजे इसके उलट आए और बीजेपी ने सत्ता बरक़रार रखी.
हरियाणा में आप ने 80 से ज़्यादा सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे. पार्टी का खाता भी नहीं खुला और दो प्रतिशत से भी कम मत मिले थे. कांग्रेस की यह हार एक झटके के रूप में देखी गई. हार के बाद दोनों दलों (कांग्रेस और आप) के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर चला.
वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद जोशी कहते हैं, "हरियाणा चुनाव के दौरान इंडिया गठबंधन को लेकर कांग्रेस और आप के मतभेद दिखने लगे थे. संजय सिंह का बयान तो औपचारिकता मात्र है. अनौपचारिक रूप से तो आम आदमी पार्टी लोकसभा चुनाव के बाद से ही इंडिया गठबंधन से बाहर हो गई थी."
वरिष्ठ पत्रकार स्मिता गुप्ता का मानना है कि दोनों के बीच कभी रिश्ते अच्छे नहीं थे सिर्फ़ गठबंधन की वजह से उन्हें साथ आना पड़ा.
स्मिता गुप्ता बताती हैं, "आज आप जिन-जिन राज्यों में मज़बूत है, वहां एक समय कांग्रेस सत्ता में हुआ करती थी. चाहे वह दिल्ली हो या पंजाब. 2024 का लोकसभा चुनाव दोनों ने एक साथ लड़ा लेकिन कोई फ़ायदा नहीं हुआ. आम आदमी पार्टी फ़िलहाल राजनीतिक संकट से गुज़र रही है और सिर्फ़ पंजाब में उसकी सरकार है. वह अभी क्षेत्रीय राजनीति पर फ़ोकस करना चाहती है, न कि राष्ट्रीय राजनीति पर. जबकि इंडिया गठबंधन का उद्देश्य राष्ट्रीय राजनीति पर असर डालना है."
साल 2027 में पंजाब में विधानसभा चुनाव हैं और यहां उसका सीधा मुक़ाबला कांग्रेस से है.
दिल्ली विधानसभा चुनावों में हार के बाद आम आदमी पार्टी ने पिछले महीने पंजाब और गुजरात की दो अहम सीटों पर अपने दम पर उपचुनाव जीतकर एक राजनीतिक मैसेज दिया. पंजाब में आप ने लुधियाना वेस्ट सीट पर कांग्रेस को हराया, जबकि गुजरात के विसावदर क्षेत्र में उसने बीजेपी को हराकर जीत दर्ज की. गुजरात में बीजेपी पिछले दो दशकों से सत्ता में है.
जानकारों का मानना है कि अकेले लड़ने से उसे अपना वोटबैंक मज़बूत करने और कांग्रेस-बीजेपी दोनों के मुक़ाबले ख़ुद को एक भरोसेमंद विकल्प के रूप में पेश करने में मदद मिली है.
गठबंधन का भविष्य और विपक्षी एकता पर असरसंसद का मॉनसून सत्र 21 जुलाई से शुरू होने जा रहा है, जिसमें केंद्र सरकार कई महत्वपूर्ण विधेयकों को पेश करने और उसे पारित कराने की योजना बना रही है.
जबकि विपक्ष इस दौरान पहलगाम हमले से लेकर बिहार में वोटर लिस्ट संशोधन जैसे मुद्दों को उठाने की तैयारी कर रहा है.
राज्यसभा में आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह केंद्र सरकार की नीतियों के ख़िलाफ़ बोलते रहे हैं और विपक्ष की मुखर आवाज़ों में से एक माने जाते हैं. लेकिन आप के गठबंधन से अलग होने में क्या विपक्षी एकता में दरार आ सकती है?
स्मिता गुप्ता बताती हैं, "संजय सिंह ने कहा है कि संसद में जो मुद्दे उठाए जाएंगे, उनमें वह टीएमसी और डीएमके के साथ हैं मगर कांग्रेस का साथ नहीं देना चाहते हैं. राष्ट्रीय फलक पर देखें तो विपक्षी एकता के लिए यह सही नहीं हुआ है. विपक्ष एकजुट रहकर ही भाजपा को हरा सकता है. चाहे संसद के अंदर हो या चुनावी मैदान में. सबसे बड़ा दल होने के नाते यह कांग्रेस की ज़िम्मेदारी है कि वह हर दल को साथ लेकर चले. राष्ट्रीय स्तर पर इसका सबसे बड़ा फ़ायदा कांग्रेस को ही होगा."
आप सांसद संजय सिंह ने ज़ोर देकर कहा कि उनकी पार्टी संसद में बीजेपी सरकार की नीतियों का विरोध करती रहेगी.
समाचार एजेंसी एएनआई से बातचीत में संजय सिंह कहते हैं, "दिल्ली में बुलडोज़र चलाया गया. हमारे यूपी-बिहार के लोगों के मकानों और दुकानों को तोड़ा गया. उत्तर प्रदेश में पांच हज़ार स्कूल बंद किए गए. ये सब मुद्दे उठाएंगे. इसके अलावा प्लेन क्रैश, ऑपरेशन सिंदूर और बिहार में एसआईआर से जुड़े मुद्दों पर संसद में सवाल पूछेंगे."
प्रमोद जोशी का मानना है, "इंडिया गठबंधन नाम के लिए ज़रूर है लेकिन राज्यों में गठबंधन के बीच टकराव देखा जा सकता है. बंगाल में ममता बनर्जी चुनावी राजनीति में कांग्रेस से दूरी बनाए हुई हैं लेकिन गठबंधन में शामिल हैं. पंजाब में लोकसभा चुनाव के दौरान आप और कांग्रेस साथ नहीं आए. यूपी के उपचुनाव में अखिलेश यादव अकेले लड़े. कांग्रेस पार्टी ख़ुद को केंद्र में रखना चाहती है लेकिन राज्यों में गठबंधन के नेता कांग्रेस के नेतृत्व को स्वीकार नहीं करते हैं. मुझे लगता है यह गठबंधन धीरे-धीरे कमज़ोर होगा और फिर अगले चुनाव के लिए नए समीकरण बनेंगे."
बिहार में इस साल के आख़िर में विधानसभा चुनाव होने हैं. यहां राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के नेतृत्व वाले महागठबंधन और बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए के बीच सीधी टक्कर है.
आम आदमी पार्टी ने कहा है कि वह बिहार चुनाव अकेले लड़ेगी.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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