"जब वह नौ साल की थी, तब उसने रणजी खेलने वाले खिलाड़ियों के साथ अपना पहला मैच खेला था और 50 रन बनाए थे. तब सबने तारीफ़ करते हुए कहा कि यह इंडिया लेवल की खिलाड़ी बनेगी."
प्रतिका के पिता प्रदीप रावल यह किस्सा बीबीसी न्यूज़ हिन्दी से साझा करते हैं.
वह बताते हैं कि इसी घटना के बाद उन्हें प्रतिका के टैलेंट का अहसास हुआ और उन्होंने उसकी भारतीय टीम के लिए तैयारी शुरू कर दी.
प्रतिका रावल ने वनडे इंटरनेशनल के सिर्फ़ आठ मैचों में 500 रन का आंकड़ा पार कर अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में धमाकेदार एंट्री की और अपने आप को साबित भी किया. वह ऐसा करने वाली दुनिया की पहली महिला खिलाड़ी हैं.
उन्होंने 28 साल पुराना वह रिकॉर्ड तोड़ा, जो इंग्लैंड की शार्लेट एडवर्ड्स ने 1997 में बनाया था.
अप्रैल में जब प्रतिका ने यह मुकाम हासिल किया, तो अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट काउंसिल (आईसीसी) ने उन्हें 'इंडियाज़ राइज़िंग स्टार' करार दिया.
क़रीब छह महीने बाद, अब वह एक और रिकॉर्ड अपने नाम करने के बेहद क़रीब हैं.
प्रतिका वनडे में सबसे तेज़ एक हज़ार रन पूरे करने से सिर्फ़ 18 रन दूर हैं.
भारत का अगला मैच आईसीसी महिला विश्व कप में रविवार, 19 अक्तूबर को इंग्लैंड के ख़िलाफ़ होगा. अगर वह इस मैच में 18 रन बनाने में कामयाब होती हैं, तो अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में सबसे तेज़ एक हज़ार रन बनाने वाली महिला खिलाड़ी बन जाएंगी.
यह रिकॉर्ड फिलहाल ऑस्ट्रेलिया की लिंडसे रीलर के नाम है, जिन्होंने 23 मैचों में यह उपलब्धि हासिल की थी.
प्रतिका ने अब तक 21 मैच खेले हैं, जिनमें उन्होंने 49 से ज़्यादा की औसत से 982 रन बनाए हैं. इनमें एक शतक और सात अर्धशतक शामिल हैं.
इस विश्व कप में उन्होंने चार मैचों में 37, 31, 37 और 75 रन की पारी खेली है.
प्रतिका के पिता प्रदीप रावल कहते हैं, "अगर वह सबसे तेज़ एक हज़ार रन बनाने में कामयाब होती हैं, तो यह उनकी व्यक्तिगत उपलब्धि तो होगी ही, साथ ही यह हमारे परिवार, टीम और देश, सभी के लिए गौरव का पल होगा."
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प्रतिका ने साल 2021 में घरेलू क्रिकेट में दिल्ली की ओर से डेब्यू किया.
तीन साल तक दिल्ली से खेलने के बाद, 2024 के घरेलू सीज़न से पहले वह रेलवे टीम से जुड़ गईं.
घरेलू क्रिकेट में असम के ख़िलाफ़ 155 गेंदों में 161 रन की पारी खेलने के बाद वह चर्चा में आईं.
2023-24 के घरेलू सीज़न में उन्होंने अपने बल्ले से शानदार प्रदर्शन किया और आठ पारियों में 411 रन बनाए, जिनमें दो शतक शामिल थे.
इसके बाद दिसंबर 2024 में उन्हें भारत की ओर से वेस्ट इंडीज के ख़िलाफ़ वनडे में डेब्यू करने का मौक़ा मिला.
प्रतिका ने इस अवसर को भुनाने में देर नहीं की. अपने छठे वनडे मुक़ाबले में ही उन्होंने 129 गेंदों में 154 रन की पारी खेली — यह उनके अंतरराष्ट्रीय करियर का पहला शतक था.
इसके साथ ही उन्होंने स्मृति मंधाना के साथ पहले विकेट के लिए 233 रन की साझेदारी भी की.
इस मैच के बाद स्मृति मंधाना के साथ उनकी ओपनिंग जोड़ी को खूब पसंद किया जाने लगा.
मैच के बाद स्मृति मंधाना के साथ बातचीत में प्रतिका ने कहा था कि शतक के क़रीब आने पर वह थोड़ा दबाव महसूस कर रही थीं, इसलिए उन्होंने एक-दो रन लेकर काम चलाया.
लेकिन जैसे ही शतक पूरा हुआ, उन्होंने तेज़ी से रन बनाए और 100 को 150 में बदला.
क्रिकेट कमेंटेटर जतिन सप्रू ने गेंदबाज़ों को समझने की उनकी क्षमता की वजह से प्रतिका को 'क्रिकेट साइंटिस्ट' तक कहा है.
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प्रतिका की कहानी इसलिए भी दिलचस्प है क्योंकि वह पढ़ाई में भी काफ़ी अच्छी रही हैं.
अक्सर खिलाड़ियों के बारे में ये सुनने को मिलता है कि वे स्कूल के दिनों से ही खेल को प्राथमिकता देते रहे हैं और पढ़ाई को साथ-साथ संभालते रहे हैं.
लेकिन प्रतिका के साथ ऐसा बिल्कुल नहीं था. उन्होंने पढ़ाई को उतनी ही प्राथमिकता दी, जितनी खेल को.
उनके पिता प्रदीप रावल बताते हैं कि इसके पीछे की वजह प्रतिका के दादा हैं.
वह कहते हैं, "प्रतिका के दादा ने हमेशा पढ़ाई को प्राथमिकता दी. उनका मानना था कि पढ़ाई हर फ़ील्ड में मदद करती है, चाहे वह क्रिकेट हो या कुछ और. इसी वजह से प्रतिका ने पढ़ाई में हमेशा ध्यान दिया."
प्रतिका रावल ने दिल्ली के बाराखंभा स्थित मॉडर्न स्कूल से पढ़ाई की है. उन्होंने 12वीं में 92.5 प्रतिशत अंक हासिल किए. इसके बाद उन्होंने जीसस एंड मैरी कॉलेज से साइकोलॉजी में बैचलर्स की डिग्री ली.
क्रिकेट में शुरुआत: 'इंडिया लेवल की खिलाड़ी'प्रतिका के पिता प्रदीप रावल भी क्रिकेटर रहे हैं. उन्होंने यूनिवर्सिटी लेवल तक क्रिकेट खेला है और वर्तमान में अंपायर हैं.
वह बताते हैं कि घर में एथलीट होने की वजह से प्रतिका का शुरू से ही खेलों के प्रति झुकाव रहा.
वह कहते हैं, "तीन साल की उम्र में ही मैंने इसे बैट पकड़ना सिखा दिया था. फिर छह साल की उम्र में क्रिकेट एकेडमी लेकर गया."
प्रदीप रावल कहते हैं, "उस समय एकेडमी में कोई लड़कियां नहीं होती थीं, यह पहली लड़की थी. और अब देखिए, लड़कियां कहां पहुंच गई हैं. देश का नाम रोशन कर रही हैं."
वह बताते हैं कि जब वह क्रिकेट खेला करते थे, तब पैरेंट्स खेल को अधिक तवज्जो नहीं देते थे. उस दौर में पैरेंट्स का मानना था कि पढ़ाई ही सब कुछ है, लेकिन आज के समय में खेल को भी प्राथमिकता दी जा रही है.
वह कहते हैं, "हमने प्रतिका को पूरा सपोर्ट किया. हमें पता था कि पैरेंट्स के तौर पर हमें क्या करना है, तो हमने वही किया और उसे पूरा सहयोग दिया."
प्रदीप रावल बताते हैं, "जब प्रतिका नौ साल की थी, तब उसने लक्ष्मीबाई कॉलेज में अपना पहला मैच खेला था. यूनिवर्सिटी की टीम थी, उसमें पांच-छह खिलाड़ी सीनियर थे, जो रणजी खेलते थे. उस मैच में इसने 50 रन बना दिए."
"इसका प्रदर्शन देख सब ने तारीफ़ की. तब से मुझे लगा कि इसमें कुछ टैलेंट है. सबको अपना बच्चा अच्छा ही लगता है, लेकिन जब लोगों ने कहा कि यह इंडिया लेवल की खिलाड़ी है, तब से मैंने उसे उसी लेवल के हिसाब से ट्रेनिंग दी."
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प्रतिका नेशनल लेवल की बास्केटबॉल खिलाड़ी भी रही हैं. उन्होंने नेशनल गेम्स में गोल्ड मेडल जीता है.
तो सवाल यह है कि जब दोनों खेलों में वह शानदार थीं, तो फिर उन्होंने क्रिकेट को क्यों चुना?
प्रदीप रावल कहते हैं कि इसमें चुनने जैसा कुछ था ही नहीं, दरअसल प्रतिका का पहला प्यार क्रिकेट ही है.
वह कहते हैं, "उसका फ़र्स्ट लव तो क्रिकेट ही है. वह बास्केटबॉल सिर्फ़ इसलिए खेलती है, ताकि उसकी फ़िटनेस बनी रहे. यह उसके लिए सेकेंडरी था."
वह आगे बताते हैं, "प्रतिका को बास्केटबॉल पसंद है और फ़ुटबॉल के बाद यह ऐसा खेल है जिसमें सबसे ज़्यादा ताक़त लगती है. वह फ़िटनेस बनाए रखने के लिए बास्केटबॉल खेलती थी. जब कभी क्रिकेट मैच नहीं होते थे, तो वह बास्केटबॉल खेलती रहती थी."
'इंडिया के लिए सेलेक्शन होना भावुक पल'जब प्रदीप रावल से पूछा गया कि प्रतिका से जुड़ा वह कौन-सा पल उन्हें सबसे ज़्यादा भावुक करता है, तो उन्होंने कहा,
"इंडिया के लिए सेलेक्शन होना, मेरे लिए सबसे भावुक पल था."
वह बताते हैं, "मैं उस वक्त रांची में एक शादी में गया हुआ था. इसका फ़ोन आया और इसने कहा, 'पापा, मेरा इंडिया में सेलेक्शन हो गया!' मैं इन शब्दों को सुनने के लिए 20-22 साल से इंतज़ार कर रहा था. जब सुना, तो आंखों में आंसू आ गए. मैं और मेरी वाइफ़ दोनों रो पड़े. यह हमारे जीवन का सबसे बड़ा पल था."
वह आगे कहते हैं, "देश के लिए खेलना बहुत बड़ा गौरव होता है. जैसे एक सिपाही बॉर्डर पर जाकर अपनी जान की बाज़ी लगाता है, वैसे ही जब कोई खिलाड़ी इंडिया के लिए मैदान में उतरता है, तो अपना सब कुछ झोंक देता है."
"यह हमारे लिए, हमारे पैरेंट्स के लिए और देश के लिए गर्व की बात है. हमें बहुत अच्छा लगता है."
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.
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