New Delhi, 31 जुलाई . हिंदी और उर्दू शायरी के जाने-माने कवि, लेखक और विचारक अली सरदार जाफरी की पुण्यतिथि हर साल 1 अगस्त को मनाई जाती है. इस अवसर पर साहित्य प्रेमी, कलाकार और बुद्धिजीवी उनकी रचनाओं को याद करते हैं और उनके संदेशों को नई पीढ़ी तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं.
“अब आ गया है जहां में तो मुस्कुराता जा, चमन के फूल दिलों के कंवल खिलाता जा”, अली सरदार जाफरी की ऐसी कई रूमानी नज्में हैं, जो उनकी सोच, उम्मीदों और उनके दृष्टिकोण को दर्शाती हैं.
अली सरदार जाफरी का जन्म 29 नवंबर 1913 को उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले के बलरामपुर में हुआ. उनके पूर्वज शिराज (ईरान) से भारत आए थे. एक शिया परिवार में जन्म लेने के कारण मुहर्रम का आयोजन उनके यहां जोश और अकीदत के साथ होता था. रेख्ता के ‘हिंदवी’ संस्करण के मुताबिक, सरदार जाफरी कहा करते थे कि कलमा और तकबीर के बाद जो पहली आवाज उनके कानों ने सुनी, वह मीर अनीस के मरसिए थे. पंद्रह-सोलह साल की उम्र में उन्होंने खुद मरसिए लिखना शुरू कर दिया था.
उनकी प्रारंभिक शिक्षा पहले घर पर और फिर बलरामपुर के एक अंग्रेजी स्कूल में हुई. हालांकि पढ़ाई में उनकी रुचि अधिक नहीं थी, और कई साल व्यर्थ गुजर जाने के बाद उन्होंने 1933 में हाईस्कूल की परीक्षा पास की. इसके बाद उन्हें उच्च शिक्षा के लिए अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय भेजा गया, लेकिन 1936 में छात्र आंदोलन में भाग लेने के कारण उन्हें विश्वविद्यालय से निष्कासित कर दिया गया. बाद में उसी विश्वविद्यालय ने उन्हें डी.लिट की मानद उपाधि प्रदान की.
इसके बाद उन्होंने दिल्ली जाकर एंग्लो-अरबी कॉलेज से बी.ए. की डिग्री प्राप्त की. फिर लखनऊ विश्वविद्यालय में पहले एलएलबी और बाद में एमए (अंग्रेजी) में दाखिला लिया. उस समय लखनऊ राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र था. ‘हिंदवी’ में इस बात का जिक्र है कि लखनऊ में उस दौर में सज्जाद जहीर, डॉ. अब्दुल अलीम, सिब्ते हसन और इसरार-उल-हक मजाज जैसे व्यक्तित्व सक्रिय थे. सरदार जाफरी भी उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर इन गतिविधियों में भाग लेने लगे. परिणामस्वरूप 1940 में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और 8 महीने तक जेल में रहना पड़ा.
इसी दौरान सरदार जाफरी, मजाज और सिब्ते हसन ने मिलकर साहित्यिक पत्रिका “नया अदब” और साप्ताहिक अखबार “पर्चम” शुरू किया, जिसका पहला अंक 1939 में प्रकाशित हुआ था. 1942 में जब कम्युनिस्ट पार्टी से प्रतिबंध हटा और उसका केंद्र Mumbai बना, तो जाफरी Mumbai चले गए और पार्टी के मुखपत्र “कौमी जंग” की संपादकीय टीम में शामिल हो गए. 1948 में उन्होंने पार्टी की सक्रिय सदस्य सुल्ताना मिनहाज से विवाह किया. Mumbai में रहते हुए भी उनकी राजनीतिक गतिविधियां जारी रही.
1960 के दशक में वे पार्टी की सक्रिय राजनीति से दूर हो गए और पत्रकारिता तथा साहित्यिक गतिविधियों की ओर अधिक ध्यान देने लगे. उन्होंने प्रगतिशील साहित्य की त्रैमासिक पत्रिका “गुफ्तगू” का संपादन किया, जो 1965 तक प्रकाशित होती रही. वे व्यवहारिक रूप से एक अत्यंत सक्रिय और गतिशील व्यक्तित्व थे. वे महाराष्ट्र उर्दू अकादमी के निदेशक, प्रगतिशील लेखक संघ के अध्यक्ष और नेशनल बुक ट्रस्ट सहित कई संस्थाओं के मानद सदस्य रहे.
उन्होंने मुहम्मद इकबाल, संत कबीर, भारत की स्वतंत्रता संग्राम की शताब्दी और उर्दू के प्रसिद्ध शायरों पर दस्तावेजी फिल्में बनाईं. उन्होंने दीवान-ए-गालिब और मीर की गजलों का सुसंपादित संस्करण उर्दू और देवनागरी में प्रकाशित किया.
उनकी काव्य रचनाओं के अनुवाद अलग-अलग भाषाओं में किए गए. विद्वानों ने उनकी शायरी पर शोध कार्य किए. देश के सबसे बड़े साहित्यिक पुरस्कार ज्ञानपीठ के अलावा सरदार जाफरी को साहित्य अकादमी अवॉर्ड और सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार से नवाजा गया. भारत सरकार ने भी सरदार जाफरी को पदमश्री से नवाजा. एक उम्र के बाद सरदार जाफरी लगातार बीमार रहे. 1 अगस्त 2000 को सरदार जाफरी का दिल का दौरा पड़ने से देहांत हो गया.
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डीसीएच/जीकेटी
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