Patna, 28 अक्टूबर . बिहार का मुजफ्फरपुर जिला न सिर्फ अपनी मीठी ‘शाही लीची’ के लिए मशहूर है, बल्कि यह बिहार की राजनीति का एक ऐसा चुनावी अखाड़ा है, जहां का इतिहास खुद चुनावी नतीजों में अपनी छाप छोड़ता है.
मुजफ्फरपुर विधानसभा सीट का सफर 1957 में शुरू हुआ था. तब से लेकर अब तक, इसने कभी किसी एक दल को अपना स्थायी ‘बादशाह’ नहीं बनने दिया. यह सीट अप्रत्याशित परिणामों के लिए जानी जाती है और यहीं से बिहार की राजनीति को कई बड़ी हस्तियां मिली हैं.
1957 में महामाया प्रसाद ने दिग्गज कांग्रेसी नेता महेश बाबू को हराया था. बाद में यही महामाया प्रसाद 1967 में बिहार के पहले गैर-कांग्रेसी Chief Minister बने थे.
मुजफ्फरपुर विधानसभा क्षेत्र, मुजफ्फरपुर Lok Sabha क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली छह विधानसभा सीटों में से एक है. यह मुख्य रूप से एक शहरी सीट है, जहां करीब 88 प्रतिशत से अधिक शहरी मतदाता हैं, जो इसे उत्तर बिहार की व्यावसायिक राजधानी का दर्जा भी देता है.
भाजपा के सुरेश कुमार शर्मा पिछले 25 वर्षों से इस चुनावी अखाड़े में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं. 2000 और 2005 में हारने के बाद उन्होंने 2010 और 2015 में जीत दर्ज की, लेकिन 2020 में उन्हें शिकस्त मिली.
सुरेश कुमार शर्मा लगातार दो बार (2010 और 2015) जीत दर्ज कर अपनी पकड़ मजबूत कर चुके थे, लेकिन 2020 में इंडियन नेशनल कांग्रेस के उम्मीदवार बिजेंद्र चौधरी ने उन्हें भारी अंतर से हराकर सीट पर कब्जा कर लिया. यह कांग्रेस की इस सीट पर रिकॉर्ड छठी जीत थी.
मुजफ्फरपुर की Political चेतना और जनसमर्थन की भावना की जड़ें India के स्वतंत्रता संग्राम में गहरी रही हैं. 30 अप्रैल 1908 को जब 18 वर्षीय क्रांतिकारी खुदीराम बोस को डगलस किंग्सफोर्ड की गाड़ी पर बम फेंकने के आरोप में गिरफ्तार कर मुजफ्फरपुर लाया गया था, तो पूरा शहर उन्हें देखने के लिए Police स्टेशन पर उमड़ पड़ा था.
कहा जाता है कि जब अदालत ने उन्हें मृत्युदंड सुनाया तो उन्होंने मुस्कुराते हुए उसे स्वीकार किया. ऐसी ही जनशक्ति का एक और अभूतपूर्व प्रदर्शन 1977 में देखने को मिला.
आपातकाल के बाद हुए Lok Sabha चुनावों में, समाजवादी नेता जॉर्ज फर्नांडिस जेल में रहते हुए मुजफ्फरपुर Lok Sabha सीट से चुनाव लड़ रहे थे. उनकी पत्नी लीला कबीर शहर में एक गाड़ी में प्रचार कर रही थीं, जिस पर सलाखों के पीछे जॉर्ज फर्नांडिस की पेंटिंग बनी हुई थी. लोगों ने उन्हें कभी देखा नहीं था, फिर भी मुजफ्फरपुर की जनता ने उन्हें 3 लाख से अधिक वोटों के भारी अंतर से जिताया.
फर्नांडिस ने 1977 से 2004 तक पांच बार इस सीट का प्रतिनिधित्व किया, हालांकि उनका Political सफर 2009 में एक दर्दनाक मोड़ पर खत्म हुआ, जब उन्हें निर्दलीय चुनाव लड़ना पड़ा और वह अपनी जमानत भी नहीं बचा पाए.
इस बार के बिहार विधानसभा चुनाव में मुख्य मुकाबला एनडीए और महागठबंधन के बीच होने की संभावना है.
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वीकेयू/वीसी
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