New Delhi, 19 अक्टूबर . कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि Monday को (20 अक्टूबर) दोपहर 3 बजकर 44 मिनट तक रहेगी. इसके बाद अमावस्या हो जाएगी. इस दिन लक्ष्मी पूजा, केदार गौरी व्रत, दीवाली, चोपड़ा पूजा, शारदा पूजा, काली पूजा, दीपमालिका और कमला जयन्ती जैसे महत्वपूर्ण पर्व मनाए जाएंगे.
द्रिक पंचांग के अनुसार, Monday के दिन सूर्य तुला राशि में और चंद्रमा कन्या राशि में रहेंगे. अभिजीत मुहूर्त का समय सुबह 11 बजकर 43 मिनट से शुरू होकर दोपहर 12 बजकर 28 मिनट तक रहेगा और राहुकाल का समय सुबह 7 बजकर 50 मिनट से शुरू होकर 9 बजकर 15 मिनट तकरहेगा.. इस दिन चतुर्दशी का समय 19 अक्टूबर दोपहर 1 बजकर 51 मिनट से शुरू होकर 20 अक्टूबर दोपहर 3 बजकर 44 मिनट तक रहेगा. इसके बाद अमावस्या शुरू हो जाएगी.
दीपावली का पंचदिवसीय उत्सव, जो धनतेरस से शुरू होकर भैया दूज तक चलता है, भारतीय संस्कृति में विशेष स्थान रखता है. यह पर्व न केवल धार्मिक, बल्कि सामाजिक और आर्थिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है. इस लेख में हम इन सभी पर्वों के महत्व, अनुष्ठानों और पौराणिक कथाओं को विस्तार से समझेंगे.
नरक चतुर्दशी: नरक चतुर्दशी, जिसे रूप चौदस या छोटी दीवाली भी कहा जाता है, कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को मनाया जाता है. इस दिन सूर्योदय से पहले अभ्यंग स्नान का विशेष महत्व है. मान्यता है कि इस स्नान से नरक की यातना से मुक्ति मिलती है और व्यक्ति के पाप नष्ट होते हैं. इस दिन तिल के तेल से उबटन लगाकर स्नान करने की परंपरा है.
पद्म पुराण, स्कंद पुराण, भविष्य पुराण और विष्णु धर्मोत्तर पुराण में नरकासुर के वध की कथा का उल्लेख है. इन ग्रंथों के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध कर पृथ्वी को उसके अत्याचारों से मुक्त किया था. इस विजय की खुशी में दीपदान और स्नान की परंपरा शुरू हुई. नरक चतुर्दशी के दिन दीप जलाने और यमराज की पूजा करने से यमलोक की यातनाओं से मुक्ति मिलती है. इस दिन लोग अपने घरों को साफ करते हैं और दीप जलाकर अंधकार को दूर करते हैं.
केदार गौरी व्रत: केदार गौरी व्रत का उल्लेख स्कंद पुराण में मिलता है. यह व्रत विशेष रूप से दक्षिण भारत, खासकर तमिलनाडु में, दीपावली अमावस्या के दिन मनाया जाता है. इस व्रत की कथा के अनुसार, देवी पार्वती ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए यह व्रत किया था, जिसके फलस्वरूप उन्हें शिव के ‘अर्धनारीश्वर’ रूप में अंश प्राप्त हुआ. यह व्रत भगवान शिव के भक्तों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है.
केदार गौरी व्रत में कुछ लोग 21 दिनों तक उपवास रखते हैं, जबकि अधिकांश एक दिन का व्रत करते हैं. इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है. यह व्रत समृद्धि, सुख और वैवाहिक जीवन में सौहार्द के लिए किया जाता है. दक्षिण India में इसे लक्ष्मी पूजा के साथ जोड़कर भी मनाया जाता है.
लक्ष्मी पूजा: दीपावली का मुख्य पर्व कार्तिक अमावस्या को लक्ष्मी पूजा के रूप में मनाया जाता है. इस दिन मां लक्ष्मी, भगवान गणेश और धन के देवता कुबेर की पूजा की जाती है. पौराणिक मान्यता के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान कार्तिक अमावस्या को मां लक्ष्मी का अवतरण हुआ था. इसलिए, इस दिन उनकी विशेष पूजा की जाती है.
लक्ष्मी पूजा के दिन लोग अपने घरों को साफ करते हैं, रंगोली बनाते हैं और दीप जलाकर रोशनी करते हैं. यह पर्व त्रेता युग में भगवान श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण के 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटने की खुशी में भी मनाया जाता है. अयोध्यावासियों ने दीप जलाकर उनका स्वागत किया था, जिससे दीपावली की परंपरा शुरू हुई. इस दिन विधिपूर्वक पूजा करने से धन, समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है.
दीवाली: दीवाली, जिसे दीपावली भी कहा जाता है, India का सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण त्योहार है. यह पर्व कार्तिक अमावस्या को पूरे देश में उत्साह के साथ मनाया जाता है. दीवाली का अर्थ है ‘दीपों की पंक्ति’. इस दिन लोग अपने घरों, दुकानों और आसपास के क्षेत्रों को दीपों और रंगोली से सजाते हैं. आतिशबाजी और मिठाइयों का आदान-प्रदान इस पर्व का विशेष हिस्सा है.
धार्मिक दृष्टिकोण से, दीवाली बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है. भगवान श्रीराम द्वारा रावण के वध और उनके अयोध्या लौटने की खुशी में यह पर्व मनाया जाता है. इसके अलावा, यह पर्व धन, समृद्धि और नए अवसरों की शुरुआत का प्रतीक भी है.
चोपड़ा पूजा: Gujarat, Rajasthan और Maharashtra में दीवाली के अवसर पर चोपड़ा पूजा का विशेष महत्व है. इस दिन व्यापारी अपने नए बही-खाते, लैजर्स या लैपटॉप की पूजा करते हैं. चोपड़ा पूजा में स्वास्तिक, ऊं और ‘शुभ-लाभ’ जैसे प्रतीकों का उपयोग किया जाता है. यह पूजा व्यापार में समृद्धि और लाभ की कामना के लिए की जाती है.
चोपड़ा पूजा के लिए शुभ मुहूर्त का विशेष ध्यान रखा जाता है. अमृत, शुभ, लाभ और चर चौघड़िया मुहूर्त को इस पूजा के लिए उपयुक्त माना जाता है. हालांकि, प्रदोष काल में लक्ष्मी पूजा और लग्न आधारित दीवाली मुहूर्त को अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है. इस परंपरा को मुहूर्त पूजन भी कहा जाता है और यह व्यापारी वर्ग के लिए नए वित्तीय वर्ष की शुरुआत का प्रतीक है.
शारदा पूजा: Gujarat में दीवाली के अवसर पर शारदा पूजा का भी आयोजन किया जाता है. इस पूजा में माता सरस्वती, लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा की जाती है. माता सरस्वती को ज्ञान और बुद्धि की देवी माना जाता है, जबकि माता लक्ष्मी धन और समृद्धि की प्रतीक हैं. भगवान गणेश बुद्धि और विघ्नहर्ता के रूप में पूजे जाते हैं.
शारदा पूजा विशेष रूप से विद्यार्थियों और व्यापारियों के लिए महत्वपूर्ण है. इस दिन नए बही-खातों की पूजा की जाती है और समृद्धि, सफलता और स्थाई संपत्ति की कामना की जाती है. यह पूजा Gujarat के साथ-साथ Rajasthan और Maharashtra में भी प्रचलित है.
काली पूजा: यह पूजा देवी काली को समर्पितहै और, दीवाली के दौरान अमावस्या तिथि पर मनाई जाती है. यह पर्व विशेष रूप से पश्चिम बंगाल, उड़ीसा और असम में प्रचलित है. काली पूजा का समय मध्यरात्रि में होता है, जबकि लक्ष्मी पूजा प्रदोष काल में की जाती है.
–
एनएस/
You may also like
बिहार चुनाव: AIMIM ने दो गैर-मुस्लिम उम्मीदवार क्यों उतारे? ओवैसी की बदली रणनीति के मायने समझिए
वेस्टइंडीज ने रचा इतिहास, बांग्लादेश के खिलाफ पूरे 50 ओवर स्पिनरों ने की गेंदबाजी
रूसी हमलों से अंधेरे में डूबे लाखों यूक्रेनवासी, बिना बिजली-पानी के रहने को मजबूर, ड्रोन के डर से मरम्मत भी रुकी
बेशर्मी पर उतरा मोहसिन नकवी... अब तो ट्रॉफी टीम इंडिया को देनी ही होगी, BCCI ने पूरी तरह नापने का प्लान किया तैयार
iPhone 17 Pro Max खरीदें या Samsung Galaxy S26 Ultra का करें इंतजार? कीमत में होगा इतना फर्क!