अगली ख़बर
Newszop

Tulsi Vivah 2025 Vidhi And Puja Samagri : तुलसी विवाह संपूर्ण विधि और पूजा सामग्री लिस्ट यहां पढ़ें

Send Push
Tulsi Vivah Puja Samagri List : कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की देवउठनी एकादशी के अगले दिन यानी द्वादशी तिथि पर तुलसी विवाह किया जाता है। इस खास अवसर पर तुलसी माता और विष्णुजी के स्वरूप शालिग्राम भगवान का विवाह होता है। साथ ही, तुलसी विवाह के दिन से ही शादी जैसे शुभ कार्यों की शुरुआत हो जाती है। ऐसी मान्यता है कि तुलसी विवाह कराने से बेहद पुण्य फल की प्राप्ति होती है और जातक के जीवन ने सभी दुख दूर हो सकते हैं। तुलसी विवाह को विधि-विधान से कराना बेहद जरूरी होता और साथ ही, पूजा के लिए सभी सामग्री होना भी आवश्यक है। तो आइए विस्तार से जानें तुलसी विवाह की संपूर्ण विधि और पूजा सामग्री लिस्ट...

तुलसी विवाह पूजन सामग्री लिस्ट (Tulsi Vivah Puja Samagri List)
शालिग्रामजी, तुलसी का पौधा, पूजा के लिए लकड़ी की चौकी, कलश, लाल रंग का वस्त्र, पानी वाला नारियल, फल और सब्जियां जैसे- सिंघाड़ा, अमरूद, अनार, आंवला, सीताफल आदि, कपूर, आम की लकड़ियां, चंदन, धूप, हल्दी की गांठ, सोलह श्रृंगार की सामग्री जैसे- बिछिया, पायल, सिंदूर, मेहंदी, चूड़ियां आदि।

तुलसी विवाह संपूर्ण विधि ( Tulsi Vivah Vidhi )
  • जो लोग तुलसी विवाह करते हैं उन्हें कन्यादान करने के लिए व्रत जरूर रखना चाहिए। इस दिन शालिग्रामजी की ओर से पुरुष वर्ग और तुलसी माता की ओर से महिला वर्ग एक साथ इकट्ठे होते हैं।
  • तुलसी विवाह के दिन शाम के समय स्त्री और पुरुषों का वर्ग अच्छी तरह तैयार होकर विवाह के लिए इकट्ठा होते हैं। इसके लिए तैयारियां भी करनी होती हैं।
  • सबसे पहले अपने घर के आंगन में एक सुंदर सी रंगोली बना लें। इसके बाद, उस पर चौकी स्थापित करनी चाहिए। साथ ही, इस दिन आंगन में चौक को सजाया जाता है।
  • चौकी स्थापित करने के बाद तुलसी के पौधे को बीच में रखें और उन्हें अच्छी तरह तैयार कर लें। इसके लिए सोलह श्रृंगार की सामग्री और लाल रंग की चुनरी या साड़ी पहनानी चाहिए।
  • तुलसी माता को तैयार करने के बाद गन्ने का मंडप बनाएं और अष्टदल कमल बनाकर चौकी पर शालिग्रामजी को स्थापित कर दें। उनका भी अच्छी तरह श्रृंगार करें।
  • अब कलश स्थापना के लिए पहले उसमें पानी भरें और कुछ बूंदें गंगाजल की भी मिलाएं। इसके बाद, आम के 5 पत्तों को रखकर उसके ऊपर नारियल रखें। लेकिन इससे पहले नारियल को लाल रंग के वस्त्र में जरूर लपेट लें।
  • कलश स्थापित करने के बाद एक चौकी पर शालिग्राम को तुलसी माता के दाहिनी ओर रखें। इसके बाद, घी का दीपक जलाएं और 'ओम श्री तुलस्यै नम:' मंत्र का जाप करें।
  • शालिग्राम और तुलसी के पौधे पर गंगाजल छिड़कें और फिर, शालिग्राम पर दूध और चंदन मिलाकर तिलक लगाएं। इसके बाद, तुलसी के पौधे पर रोली से तिलक लगाएं।
  • तिलक करने के पश्चात फल, फूल, सब्जी आदि सामग्री शालिग्राम और तुलसी माता को अर्पित करें। अब पुरुष शालिग्राम को अपनी गोद में उठाएं और महिला तुलसीजी को उठाएं।
  • अब तुलसी का 7 बार परिक्रमा करें और इस दौरान सभी लोग मंगल गीत गाएं। साथ ही, कुछ लोगों को विवाह के मंत्रों का उच्चारण करना चाहिए। इस दौरान ख्याल रखें कि मंत्र बोलते समय कोई गलती न हो।
  • परिक्रमा के बाद तुलसी माता और शालिग्राम जी को खीर व पूड़ी का भोग लगाएं। अब अंत में विधि-विधान से आरती करें और फिर, सभी लोगों को प्रसाद बांट दें।

तुलसी विवाह पूजन विधि और नियम ( Tulsi Vivah Puja Vidhi )
पद्म पुराण में कार्तिक शुक्ल नवमी को तुलसी विवाह का उल्लेख किया गया है। लेकिन अन्य ग्रन्थों के अनुसार प्रबोधिनी से पूर्णिमा पर्यन्त के पांच दिन अधिक फल देते हैं। व्रती को चाहिए कि विवाह के तीन मास पूर्व तुलसी के पेड़ को सिंचन और पूजन से पोषित करे। प्रबोधिनी या भीष्मपंचक अथवा ज्योति शास्त्रोक्त विवाह मुहूर्त में तोरण-मण्डपादि की रचना करके चार ब्राह्मणों को साथ लेकर गणपति-मातृकाओं का पूजन, नान्दीश्राद्ध और पुण्याहवाचन करके मन्दिर की साक्षात मूर्ति के साथ सुवर्ण के लक्ष्मीनारायण और पोषित तुलसी के साथ सोने और चांदी की तुलसी को शुभासन पर पूर्वाभिमुख विराजमान करे और सपत्नीक यजमान उत्तराभिमुख बैठकर 'तुलसी विवाह-विधि' के अनुसार गोधूलीय समय में 'वर' (भगवान) का पूजन, 'कन्या' (तुलसी) का दान, कुशकण्डी हवन और अग्नि-परिक्रमा आदि करके वस्त्राभूषणादि दे और यथाशक्ति ब्राह्मण भोजन कराकर स्वयं भोजन करे।

कार्तिक शुक्ल नवमी को प्रातः स्नानादि करके मकान के अंदर बालू की वेदी बनाएं। उस पर तुलसी का प्रत्यक्ष पेड़ और चांदी की सपत्र शाखा तथा सोने की मंजरी युक्त निर्मित पेड़ रख के यथाविधि पूजन करे। ऋतु काल के फल-पुष्पादि का भोग लगाएं। एक दीपक को घी से पूर्ण करके लम्बी बाती से उसे अखण्ड प्रज्वलित रखे और निराहार रहकर रात्रि में कथा वार्ता श्रवण करने के अनन्तर जमीन पर शयन करे। इस प्रकार नवमी, दशमी और एकादशी का उपवास करने के अनन्तर द्वादशी को (रेवती के अन्तिम तृतीयांशकी २० घड़ियाँ हों तो उनको त्यागकर) ब्राह्मण दम्पति को दान-मान सहित भोजन कराकर स्वयं भोजन करें।

न्यूजपॉईंट पसंद? अब ऐप डाउनलोड करें