चंडीगढ़: पंजाब कांग्रेस में अंतर्कलह एक बार फिर सतह पर आ गई है। कांग्रेस विधायक विक्रमजीत सिंह चौधरी की नाटकीय वापसी ने राज्य की राजनीति में हलचल मचा दी है। कांग्रेस आलाकमान द्वारा सोमवार को उनकी निलंबन रद्द करने के कुछ घंटों बाद ही उन्होंने लुधियाना के डाखा में आयोजित एक पार्टी कार्यक्रम में हिस्सा लिया, जिसकी अगुवाई खुद प्रदेश अध्यक्ष अमरिंदर सिंह राजा वड़िग ने की। विक्रमजीत को पहले पूर्व मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी का विरोध करने के चलते पार्टी से निलंबित किया गया था। लेकिन अब उनकी वापसी को वड़िंग की ‘राजनीतिक वापसी का जवाबी हमला’ माना जा रहा है।
क्या है सियासी पेंच?
विक्रमजीत सिंह के पिता संतोष चौधरी जालंधर से सांसद थे और भारत जोड़ो यात्रा के दौरान उनका निधन हो गया था। इसके बाद उनकी मां करमजीत कौर को कांग्रेस ने उपचुनाव में टिकट दिया, लेकिन वे हार गईं। दिलचस्प बात यह है कि करमजीत भाजपा में शामिल हो गईं, जबकि बेटा विक्रमजीत कांग्रेस में ही रहते हुए चन्नी का खुला विरोध करता रहा और अंततः निलंबित हुआ।
चन्नी खेमे को बड़ा राजनीतिक संदेश दिया
बीते हफ्तों में चन्नी और उनके करीबी नेताओं ने वड़िंग के विरोधी रहे करन वड़िंग और कमलजीत सिंह करवाल को पार्टी में दोबारा शामिल कराया। इसके बाद वड़िंग ने विक्रमजीत को दोबारा पार्टी में लाकर एक करारा पलटवार किया। यह अब साफ है कि पहले जहां कांग्रेस नेताओं के बीच खेमेबाज़ी अपने समर्थकों को बाहर करने तक सीमित थी, अब यह लड़ाई एक-दूसरे के विरोधियों को साथ लाने तक पहुंच गई है।
सियासी तूफान के संकेत?
वड़िंग ने एक्स पर लिखा कि हम कांग्रेस में अपने सहयोगी और फिल्लौर विधायक विक्रमजीत का स्वागत करते हैं। वे तीसरी पीढ़ी के कांग्रेसी हैं और उनकी वापसी से पार्टी को मजबूती मिलेगी। इस पोस्ट के साथ उन्होंने सुखजिंदर सिंह रंधावा, कैप्टन संदीप संधू और गुरकीरत कोटली के साथ विक्रमजीत की तस्वीर भी साझा की, जो एकजुटता का प्रदर्शन था। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह घटनाक्रम कांग्रेस की आगामी रणनीति और अंदरूनी गुटबाज़ी को और गहराई देगा। एक तरफ जहां लोकसभा चुनाव की हार के बाद पार्टी पहले से ही आत्ममंथन की स्थिति में है, वहीं दूसरी तरफ यह चन्नी बनाम वॉरिंग की लड़ाई अब और उग्र होती दिख रही है।
क्या है सियासी पेंच?
विक्रमजीत सिंह के पिता संतोष चौधरी जालंधर से सांसद थे और भारत जोड़ो यात्रा के दौरान उनका निधन हो गया था। इसके बाद उनकी मां करमजीत कौर को कांग्रेस ने उपचुनाव में टिकट दिया, लेकिन वे हार गईं। दिलचस्प बात यह है कि करमजीत भाजपा में शामिल हो गईं, जबकि बेटा विक्रमजीत कांग्रेस में ही रहते हुए चन्नी का खुला विरोध करता रहा और अंततः निलंबित हुआ।
चन्नी खेमे को बड़ा राजनीतिक संदेश दिया
बीते हफ्तों में चन्नी और उनके करीबी नेताओं ने वड़िंग के विरोधी रहे करन वड़िंग और कमलजीत सिंह करवाल को पार्टी में दोबारा शामिल कराया। इसके बाद वड़िंग ने विक्रमजीत को दोबारा पार्टी में लाकर एक करारा पलटवार किया। यह अब साफ है कि पहले जहां कांग्रेस नेताओं के बीच खेमेबाज़ी अपने समर्थकों को बाहर करने तक सीमित थी, अब यह लड़ाई एक-दूसरे के विरोधियों को साथ लाने तक पहुंच गई है।
सियासी तूफान के संकेत?
वड़िंग ने एक्स पर लिखा कि हम कांग्रेस में अपने सहयोगी और फिल्लौर विधायक विक्रमजीत का स्वागत करते हैं। वे तीसरी पीढ़ी के कांग्रेसी हैं और उनकी वापसी से पार्टी को मजबूती मिलेगी। इस पोस्ट के साथ उन्होंने सुखजिंदर सिंह रंधावा, कैप्टन संदीप संधू और गुरकीरत कोटली के साथ विक्रमजीत की तस्वीर भी साझा की, जो एकजुटता का प्रदर्शन था। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह घटनाक्रम कांग्रेस की आगामी रणनीति और अंदरूनी गुटबाज़ी को और गहराई देगा। एक तरफ जहां लोकसभा चुनाव की हार के बाद पार्टी पहले से ही आत्ममंथन की स्थिति में है, वहीं दूसरी तरफ यह चन्नी बनाम वॉरिंग की लड़ाई अब और उग्र होती दिख रही है।
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