गुरुग्राम: दिल्ली से सटे गुरुग्राम के झारसा इलाके की एक झुग्गी बस्ती से पिछले शुक्रवार को पुलिस ने 12 लोगों के एक ग्रुप को पुलिस ने पकड़ा था। इनमें से दो ने आरोप लगाया है कि पुलिस उन्हें सेक्टर 10ए थाने में ले गई, जहां उनके कपड़े उतरवा दिए गए। उन्हें पूरी रात लॉकअप में बंद रखा गया। इस दौरान उन्होंने सिर्फ अंडरवियर पहने थे। बाद में उन्हें बादशाहपुर के होल्डिंग सेंटर में शिफ्ट कर दिया गया, जहां वे चार दिन तक हिरासत में रहे। बुधवार को दोनों को रिहा किया गया। गुरुग्राम पुलिस पर आरोप लगाने वाले दो मजदूरों में एक असम के चिरांग जिले का निवासी है, जबकि दूसरा बंगाल के उत्तर दिनाजपुर से है।
लगाए ये आरोप
दोनों ने आरोप लगाया कि 18 जुलाई की रात करीब 11 बजे सादे कपड़े पहने पुलिसकर्मी झुग्गियों में आए और चार लोगों को बिना कोई वजह बताए वैन में भर लिया। कचरा चुनने वाले 37 वर्षीय असम निवासी ने बताया कि हमें सेक्टर 10ए थाने ले जाया गया और कहा गया कि हम बांग्लादेशी हैं। हमने आईडी दिखाने की कोशिश की और कहा कि हम भारतीय हैं, लेकिन वे बार-बार हमें बांग्लादेशी कहते रहे। बाद में हमारे सारे कपड़े उतरवाकर हमें सिर्फ अंडरवियर में छोड़ दिया गया। ऐसा ल लगभग 12 घंटे तक किया गया।
पुलिस ने आरोपों पर क्या कहा
गुरुग्राम के पुलिस प्रवक्ता संदीप ने इन आरोपों को झूठा बताया है। वहीं एक अन्य पुलिस अधिकारी ने कहा कि यह केवल आईडी वेरिफिकेशन की प्रक्रिया थी। किसी को कपड़े उतारने के लिए नहीं कहा गया। पुलिस की यह कार्रवाई गृह मंत्रालय द्वारा 2 मई को जारी निर्देशों के तहत की जा रही है, जिसमें बांग्लादेशी और रोहिंग्या अवैध रूप से भारत में रह रहे लोगों की पहचान करने का आदेश है। बादशाहपुर कम्युनिटी सेंटर को चार होल्डिंग सेंटर्स में से एक के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है, जहां हिरासत में लिए गए लोगों के दस्तावेजों की जांच की जा रही है।
बंगाली और असमिया में बोलने को कहा
वहीं एक निजी कंपनी में हाउसकीपिंग का काम करने वाले उत्तर दिनाजपुर के 26 वर्षीय व्यक्ति बताया कि उसे भी 18 जुलाई को हिरासत में लिया गया था। उसने आरोप लगाया कि पुलिस ने सभी का मोबाइल फोन जब्त कर लिया और उन्हें अपनी स्थानीय भाषा बंगाली और असमिया में बोलने को कहा गया। उन्हें सिर्फ एक बार अपने घर पर कॉल करने की अनुमति दी गई, ताकि परिवार दस्तावेज ला सके। उसने बताया कि होल्डिंग सेंटर में उनसे बार-बार नाम, पता और जन्मस्थान पूछा गया, लेकिन उनके साथ दुर्व्यवहार नहीं किया गया। वहां दो-तीन अधिकारी कुछ टाइप या लिख रहे थे। हमें नहीं पता वो क्या कर रहे थे, लेकिन चार दिन तक यही चलता रहा। रिहा हुए मजदूर ने बताया कि सेंटर में नियमित रूप से खाना तो मिला, लेकिन सोने के लिए केवल एक चादर दी गई। उन्होंने यह भी बताया कि उनके इलाके के कई परिवार डर के कारण शहर छोड़कर अपने गांव लौट गए हैं क्योंकि उन्हें डर है कि बंगाली बोलने के कारण उन्हें भी टारगेट किया जा सकता है।
लगाए ये आरोप
दोनों ने आरोप लगाया कि 18 जुलाई की रात करीब 11 बजे सादे कपड़े पहने पुलिसकर्मी झुग्गियों में आए और चार लोगों को बिना कोई वजह बताए वैन में भर लिया। कचरा चुनने वाले 37 वर्षीय असम निवासी ने बताया कि हमें सेक्टर 10ए थाने ले जाया गया और कहा गया कि हम बांग्लादेशी हैं। हमने आईडी दिखाने की कोशिश की और कहा कि हम भारतीय हैं, लेकिन वे बार-बार हमें बांग्लादेशी कहते रहे। बाद में हमारे सारे कपड़े उतरवाकर हमें सिर्फ अंडरवियर में छोड़ दिया गया। ऐसा ल लगभग 12 घंटे तक किया गया।
पुलिस ने आरोपों पर क्या कहा
गुरुग्राम के पुलिस प्रवक्ता संदीप ने इन आरोपों को झूठा बताया है। वहीं एक अन्य पुलिस अधिकारी ने कहा कि यह केवल आईडी वेरिफिकेशन की प्रक्रिया थी। किसी को कपड़े उतारने के लिए नहीं कहा गया। पुलिस की यह कार्रवाई गृह मंत्रालय द्वारा 2 मई को जारी निर्देशों के तहत की जा रही है, जिसमें बांग्लादेशी और रोहिंग्या अवैध रूप से भारत में रह रहे लोगों की पहचान करने का आदेश है। बादशाहपुर कम्युनिटी सेंटर को चार होल्डिंग सेंटर्स में से एक के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है, जहां हिरासत में लिए गए लोगों के दस्तावेजों की जांच की जा रही है।
बंगाली और असमिया में बोलने को कहा
वहीं एक निजी कंपनी में हाउसकीपिंग का काम करने वाले उत्तर दिनाजपुर के 26 वर्षीय व्यक्ति बताया कि उसे भी 18 जुलाई को हिरासत में लिया गया था। उसने आरोप लगाया कि पुलिस ने सभी का मोबाइल फोन जब्त कर लिया और उन्हें अपनी स्थानीय भाषा बंगाली और असमिया में बोलने को कहा गया। उन्हें सिर्फ एक बार अपने घर पर कॉल करने की अनुमति दी गई, ताकि परिवार दस्तावेज ला सके। उसने बताया कि होल्डिंग सेंटर में उनसे बार-बार नाम, पता और जन्मस्थान पूछा गया, लेकिन उनके साथ दुर्व्यवहार नहीं किया गया। वहां दो-तीन अधिकारी कुछ टाइप या लिख रहे थे। हमें नहीं पता वो क्या कर रहे थे, लेकिन चार दिन तक यही चलता रहा। रिहा हुए मजदूर ने बताया कि सेंटर में नियमित रूप से खाना तो मिला, लेकिन सोने के लिए केवल एक चादर दी गई। उन्होंने यह भी बताया कि उनके इलाके के कई परिवार डर के कारण शहर छोड़कर अपने गांव लौट गए हैं क्योंकि उन्हें डर है कि बंगाली बोलने के कारण उन्हें भी टारगेट किया जा सकता है।
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