नई दिल्ली: सरकार ने कपड़ा उद्योग की एक पुरानी मांग मान ली है। उसने कपास के आयात पर 11% की ड्यूटी हटा दी है। भारत ने इस एक फैसले से कई निशाने साधे हैं। यह फैसला टेक्सटाइल इंडस्ट्री को राहत देगा। इससे अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को सीधा मैसेज जाएगा। भारत को कॉटन एक्सपोर्ट करने के मामले में अमेरिका दूसरे नंबर पर है। वहीं, बांग्लादेश के लिए यह कदम सिरदर्द बढ़ाने वाला है। इससे टेक्सटाइल सेक्टर में उसके लिए चुनौती बढ़ेगी। भारत ने ऐसा इसलिए किया ताकि अमेरिका की ओर से लगाए गए ऊंचे टैरिफ से इस इडस्ट्री को बचाया जा सके। इस उद्योग पर अमेरिका के 50% टैरिफ का सबसे बुरा असर पड़ने की आशंका है। ड्यूटी हटाने का यह फैसला 30 सितंबर तक लागू रहेगा। इससे अमेरिका के साथ व्यापारिक तनाव भी कम हो सकता है।
कपास का दूसरा सबसे बड़ा एक्सपोर्टर है अमेरिका
दरअसल, अमेरिका भारत को कपास का दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक है। वह व्यापार समझौते के लिए बातचीत के दौरान भारतीय बाजार में ज्यादा पहुंच की मांग कर रहा है। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, उद्योग ने अमेरिकी कपास पर ड्यूटी में कटौती का सुझाव दिया था। यह सुझाव व्यापार समझौते को बेहतर बनाने के लिए दिया गया था। बांग्लादेश ने भी ऐसी ही रियायत अमेरिका को समझौते में शामिल होने के लिए दी थी। शुल्क हटाने का मकसद उद्योग की मुश्किलों को कम करना है। इसमें अमेरिका के ऊंचे शुल्क और कपास की ऊंची कीमतें शामिल हैं। यह अमेरिकी वार्ताकारों को भी एक संकेत है कि भारत वाशिंगटन से कपास के आयात पर बातचीत करने को तैयार हो सकता है।
नई दिल्ली स्थित थिंक टैंक ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) के अनुसार, वित्त वर्ष 2024-25 में भारत का लगभग सारा 1.20 अरब डॉलर का कपास आयात 28 मिमी या उससे अधिक स्टेपल लंबाई का था। भारत-ऑस्ट्रेलिया आर्थिक सहयोग और व्यापार समझौते के तहत ऐसा 51,000 MT कपास पहले से ही शुल्क-मुक्त आता है। जीटीआरआई ने कहा कि भारत के नए शुल्क-मुक्त नियम से सबसे ज्यादा फायदा अमेरिका को होगा।
निर्यातकों ने किया फैसले का स्वागत उद्योग के अधिकारियों का कहना है कि शुल्क में कटौती की घोषणा ऐसे समय में की गई है जब कपास का सीजन नहीं चल रहा है। इससे भारतीय किसानों पर कोई असर नहीं पड़ेगा। कपास की तुड़ाई अक्टूबर में शुरू होती है और मार्च तक बाजार में बिकती है। अक्टूबर से मार्च के बीच का समय पीक सीजन कहलाता है।
निर्यातकों ने इस राहत का स्वागत किया है। उनका कहना है कि कच्चे कपास का आयात केवल उन शिपमेंट को प्रभावित करेगा जो रास्ते में हैं। राहत की अवधि इतनी कम है कि इससे नए ऑर्डर पर कोई असर नहीं पड़ेगा। निर्यातकों ने सरकार से इस अवधि को बढ़ाने की मांग की है। उनका कहना है कि इससे भारत को ब्रिटेन और यूरोपीय संघ (ईयू) जैसे बाजारों को बनाए रखने में मदद मिल सकती है, लेकिन अमेरिका को नहीं।
बांग्लादेश के लिए बढ़ सकती है चुनौती
कन्फेडरेशन ऑफ इंडियन टेक्सटाइल इंडस्ट्री (CITI) के एक विश्लेषण में कहा गया है कि वियतनाम और बांग्लादेश जैसे देशों से अमेरिका के टेक्सटाइल और अपैरल (T&A) आयात में तेजी आई है। CITI ने कहा, 'जून 2025 में वियतनाम और बांग्लादेश से अमेरिका के T&A आयात में 26.2% और 44.6% की बढ़ोतरी हुई। इससे पता चलता है कि इन देशों से सोर्सिंग में तेजी आ रही है।'
भारत ने 2025 की पहली तिमाही में अच्छा प्रदर्शन किया था। लेकिन बाद में अमेरिका को T&A निर्यात में गिरावट आई। CITI ने कहा कि जून 2025 में भारत के निर्यात में जून 2024 की तुलना में केवल 3.3% की बढ़ोतरी हुई। यह पहले की तुलना में बहुत कम है। यह वियतनाम और बांग्लादेश जैसे देशों की तुलना में भी काफी कम है।
CITI ने कहा कि चीन में जून 2025 में भारी गिरावट जारी रही। चीन से अमेरिका का आयात जून 2024 की तुलना में 41% गिर गया। यह गिरावट अप्रैल 2025 से जारी है। भारत का कपड़ा क्षेत्र कपास पर निर्भर है। कपास वैल्यू चेन लगभग 3.5 करोड़ लोगों को रोजगार देता है। यह भारत के कुल कपड़ा निर्यात में लगभग 80% का योगदान देता है। भारत का लक्ष्य 2030 तक कपड़ा और परिधान निर्यात को दोगुना से अधिक करके 100 अरब डॉलर करना है।
कपास का दूसरा सबसे बड़ा एक्सपोर्टर है अमेरिका
दरअसल, अमेरिका भारत को कपास का दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक है। वह व्यापार समझौते के लिए बातचीत के दौरान भारतीय बाजार में ज्यादा पहुंच की मांग कर रहा है। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, उद्योग ने अमेरिकी कपास पर ड्यूटी में कटौती का सुझाव दिया था। यह सुझाव व्यापार समझौते को बेहतर बनाने के लिए दिया गया था। बांग्लादेश ने भी ऐसी ही रियायत अमेरिका को समझौते में शामिल होने के लिए दी थी। शुल्क हटाने का मकसद उद्योग की मुश्किलों को कम करना है। इसमें अमेरिका के ऊंचे शुल्क और कपास की ऊंची कीमतें शामिल हैं। यह अमेरिकी वार्ताकारों को भी एक संकेत है कि भारत वाशिंगटन से कपास के आयात पर बातचीत करने को तैयार हो सकता है।
नई दिल्ली स्थित थिंक टैंक ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) के अनुसार, वित्त वर्ष 2024-25 में भारत का लगभग सारा 1.20 अरब डॉलर का कपास आयात 28 मिमी या उससे अधिक स्टेपल लंबाई का था। भारत-ऑस्ट्रेलिया आर्थिक सहयोग और व्यापार समझौते के तहत ऐसा 51,000 MT कपास पहले से ही शुल्क-मुक्त आता है। जीटीआरआई ने कहा कि भारत के नए शुल्क-मुक्त नियम से सबसे ज्यादा फायदा अमेरिका को होगा।
निर्यातकों ने किया फैसले का स्वागत उद्योग के अधिकारियों का कहना है कि शुल्क में कटौती की घोषणा ऐसे समय में की गई है जब कपास का सीजन नहीं चल रहा है। इससे भारतीय किसानों पर कोई असर नहीं पड़ेगा। कपास की तुड़ाई अक्टूबर में शुरू होती है और मार्च तक बाजार में बिकती है। अक्टूबर से मार्च के बीच का समय पीक सीजन कहलाता है।
निर्यातकों ने इस राहत का स्वागत किया है। उनका कहना है कि कच्चे कपास का आयात केवल उन शिपमेंट को प्रभावित करेगा जो रास्ते में हैं। राहत की अवधि इतनी कम है कि इससे नए ऑर्डर पर कोई असर नहीं पड़ेगा। निर्यातकों ने सरकार से इस अवधि को बढ़ाने की मांग की है। उनका कहना है कि इससे भारत को ब्रिटेन और यूरोपीय संघ (ईयू) जैसे बाजारों को बनाए रखने में मदद मिल सकती है, लेकिन अमेरिका को नहीं।
बांग्लादेश के लिए बढ़ सकती है चुनौती
कन्फेडरेशन ऑफ इंडियन टेक्सटाइल इंडस्ट्री (CITI) के एक विश्लेषण में कहा गया है कि वियतनाम और बांग्लादेश जैसे देशों से अमेरिका के टेक्सटाइल और अपैरल (T&A) आयात में तेजी आई है। CITI ने कहा, 'जून 2025 में वियतनाम और बांग्लादेश से अमेरिका के T&A आयात में 26.2% और 44.6% की बढ़ोतरी हुई। इससे पता चलता है कि इन देशों से सोर्सिंग में तेजी आ रही है।'
भारत ने 2025 की पहली तिमाही में अच्छा प्रदर्शन किया था। लेकिन बाद में अमेरिका को T&A निर्यात में गिरावट आई। CITI ने कहा कि जून 2025 में भारत के निर्यात में जून 2024 की तुलना में केवल 3.3% की बढ़ोतरी हुई। यह पहले की तुलना में बहुत कम है। यह वियतनाम और बांग्लादेश जैसे देशों की तुलना में भी काफी कम है।
CITI ने कहा कि चीन में जून 2025 में भारी गिरावट जारी रही। चीन से अमेरिका का आयात जून 2024 की तुलना में 41% गिर गया। यह गिरावट अप्रैल 2025 से जारी है। भारत का कपड़ा क्षेत्र कपास पर निर्भर है। कपास वैल्यू चेन लगभग 3.5 करोड़ लोगों को रोजगार देता है। यह भारत के कुल कपड़ा निर्यात में लगभग 80% का योगदान देता है। भारत का लक्ष्य 2030 तक कपड़ा और परिधान निर्यात को दोगुना से अधिक करके 100 अरब डॉलर करना है।
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