पटना: 23 अक्टूबर के दिन पटना के होटल मौर्या में वो हुआ, जिसकी कम से कम इस बार उम्मीद नहीं की जा रही थी। बिहार विधानसभा चुनाव में ऐसा साफ दिखने लगा था कि कांग्रेस राजद की बैसाखी उतार फेंकने को तैयार हो गई है। लेकिन 23 अक्टूबर के दो दिन पहले अचानक से राजस्थान के पूर्व सीएम अशोक गहलोत की एंट्री हुई और पूरा सीन ही पलट गया।
23 अक्टूबर को पलटा हुआ सीन
इस दिन मीडिया को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस का आमंत्रण मिला। खासतौर पर ये आमंत्रण राष्ट्रीय जनता दल (RJD) और कांग्रेस की तरफ से आया। सुबह 11:30 बजे का वक्त रखा गया। लेकिन बाहर और अंदर लगे पोस्टरों ने एक बात साफ कर दी कि कांग्रेस ने फिर से राजद के आगे सरेंडर कर दिया है। ये हम नहीं कह रहे बल्कि सियासी गलियारों में इसकी खूब चर्चा है। चर्चा भी ऐसी कि पटना का आम आदमी भी चाय की दुकान या कचौड़ी के ठेले पर यही बात करता दिखा।
राजद के आगे कांग्रेस का सरेंडर
इन पोस्टरों में एक बात साफ कर दी गई थी बिहार में महागठबंधन के सीएम उम्मीदवार तेजस्वी यादव होंगे। वही तेजस्वी यादव जिनकी सीएम उम्मीदवारी के सवाल पर वोटर अधिकार यात्रा में राहुल गांधी चुप्पी साध गए थे। इसके बाद बिहार कांग्रेस प्रभारी कृष्णा अल्लावरु ने भी राजद के सामने बिहार कांग्रेस की रीढ़ दिखा दी और झुकने से इनकार कर दिया। लेकिन अचानक से स्टैंड कैसे बदला? इसके पीछे भी कई किस्से गढ़े जा रहे हैं।
पहला किस्सा- लालू की कॉल!
एक किस्सा ये है कि कांग्रेस ने तेजस्वी यादव यानी राजद को गठबंधन का छोटा भाई बनाने के लिए लेफ्ट और VIP पर डोरे डाल दिए थे। लेकिन चतुर लालू प्रसाद यादव इस बात को ताड़ गए कि कम अनुभव वाले तेजस्वी यादव इस जाल में फंस गए हैं। लिहाजा लालू प्रसाद यादव ने सीधे दिल्ली बात की होगी और सोनिया गांधी को कह दिया होगा कि अगर कांग्रेस अपने मन की करेगी तो वो उसकी पार्टी के सारे उम्मीदवारों के सामने राजद कैंडिडेट खड़े कर देंगे। इसी वजह से अशोक गहलोत को मामला सलटाने की जिम्मेदारी दी गई होगी। लेकिन पटना में अशोक गहलोत को लालू यादव ने यही बात दो टूक कह दी होगी।
दूसरा किस्सा- डर गई कांग्रेस!
दूसरा किस्सा ये है कि राजद के अड़े हुए रुख को देख कांग्रेस को ये डर सताने लगा होगा कि अगर खीस (गुस्से) में राजद का वोट कांग्रेस उम्मीदवारों को ट्रांसफर न हुआ तो लुटिया डूब जाएगी। इस लिए वक्त रहते मामला संभाल लेने में ही भलाई है। इसीलिए अशोक गहलोत को खुद आगे आकर प्रेस कॉन्फ्रेंस में महागठबंधन के सभी दलों के बीच ये कबूल करना पड़ा कि चुनाव तेजस्वी के चेहरे पर ही लड़ा जाएगा।
क्या कहते हैं पॉलिटिकल एक्सपर्ट
पटना के मशहूर पॉलिटकल एक्सपर्ट और शिक्षाविद् डॉक्टर संजय कुमार का कहना है कि '1990 के बाद से ही कांग्रेस कभी भी अपनी जमीन को मजबूत करने का साहस नहीं जुटा पाई है। हमेशा वो राजद के सामने अपने आप को बौना साबित करते रही। स्वभाविक है कि इनके अपने कार्यकर्ता निराश और उदासीन हो जाते हैं। इसके बाद वो किसी और पार्टी की तरफ रुख कर लेते हैं। राजद कांग्रेस की इस कमजोरी को बखूबी समझती है, और हमेशा दबाव की राजनीति करके इसका फायदा उठाते रहती है।'
असल सवाल- आखिर माजरा क्या है?
ये तब की बात है जब दिवंगत सीताराम केसरी कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष हुआ करते थे। 90 के दशक में ही कांग्रेस ने लालू यादव का साथ देकर उन्हें सत्ता में बने रहने में मदद की। इसके बाद लालू प्रसाद यादव ने जब 1997 में जनता दल से अलग होकर राष्ट्रीय जनता दल बनाया, तब भी सत्ता के लिए कांग्रेस उनके साथ ही रही। कहा जाता है कि धीरे-धीरे इसी तरह से कांग्रेस ने अपने आधार वोट बैंक को खुद ही खुद से दूर कर दिया, जो आज तक लालू यादव के चलते उसके साथ नहीं जुड़े और बीजेपी चले गए।
23 अक्टूबर को पलटा हुआ सीन
इस दिन मीडिया को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस का आमंत्रण मिला। खासतौर पर ये आमंत्रण राष्ट्रीय जनता दल (RJD) और कांग्रेस की तरफ से आया। सुबह 11:30 बजे का वक्त रखा गया। लेकिन बाहर और अंदर लगे पोस्टरों ने एक बात साफ कर दी कि कांग्रेस ने फिर से राजद के आगे सरेंडर कर दिया है। ये हम नहीं कह रहे बल्कि सियासी गलियारों में इसकी खूब चर्चा है। चर्चा भी ऐसी कि पटना का आम आदमी भी चाय की दुकान या कचौड़ी के ठेले पर यही बात करता दिखा।
राजद के आगे कांग्रेस का सरेंडर
इन पोस्टरों में एक बात साफ कर दी गई थी बिहार में महागठबंधन के सीएम उम्मीदवार तेजस्वी यादव होंगे। वही तेजस्वी यादव जिनकी सीएम उम्मीदवारी के सवाल पर वोटर अधिकार यात्रा में राहुल गांधी चुप्पी साध गए थे। इसके बाद बिहार कांग्रेस प्रभारी कृष्णा अल्लावरु ने भी राजद के सामने बिहार कांग्रेस की रीढ़ दिखा दी और झुकने से इनकार कर दिया। लेकिन अचानक से स्टैंड कैसे बदला? इसके पीछे भी कई किस्से गढ़े जा रहे हैं।
पहला किस्सा- लालू की कॉल!
एक किस्सा ये है कि कांग्रेस ने तेजस्वी यादव यानी राजद को गठबंधन का छोटा भाई बनाने के लिए लेफ्ट और VIP पर डोरे डाल दिए थे। लेकिन चतुर लालू प्रसाद यादव इस बात को ताड़ गए कि कम अनुभव वाले तेजस्वी यादव इस जाल में फंस गए हैं। लिहाजा लालू प्रसाद यादव ने सीधे दिल्ली बात की होगी और सोनिया गांधी को कह दिया होगा कि अगर कांग्रेस अपने मन की करेगी तो वो उसकी पार्टी के सारे उम्मीदवारों के सामने राजद कैंडिडेट खड़े कर देंगे। इसी वजह से अशोक गहलोत को मामला सलटाने की जिम्मेदारी दी गई होगी। लेकिन पटना में अशोक गहलोत को लालू यादव ने यही बात दो टूक कह दी होगी।
दूसरा किस्सा- डर गई कांग्रेस!
दूसरा किस्सा ये है कि राजद के अड़े हुए रुख को देख कांग्रेस को ये डर सताने लगा होगा कि अगर खीस (गुस्से) में राजद का वोट कांग्रेस उम्मीदवारों को ट्रांसफर न हुआ तो लुटिया डूब जाएगी। इस लिए वक्त रहते मामला संभाल लेने में ही भलाई है। इसीलिए अशोक गहलोत को खुद आगे आकर प्रेस कॉन्फ्रेंस में महागठबंधन के सभी दलों के बीच ये कबूल करना पड़ा कि चुनाव तेजस्वी के चेहरे पर ही लड़ा जाएगा।
क्या कहते हैं पॉलिटिकल एक्सपर्ट
पटना के मशहूर पॉलिटकल एक्सपर्ट और शिक्षाविद् डॉक्टर संजय कुमार का कहना है कि '1990 के बाद से ही कांग्रेस कभी भी अपनी जमीन को मजबूत करने का साहस नहीं जुटा पाई है। हमेशा वो राजद के सामने अपने आप को बौना साबित करते रही। स्वभाविक है कि इनके अपने कार्यकर्ता निराश और उदासीन हो जाते हैं। इसके बाद वो किसी और पार्टी की तरफ रुख कर लेते हैं। राजद कांग्रेस की इस कमजोरी को बखूबी समझती है, और हमेशा दबाव की राजनीति करके इसका फायदा उठाते रहती है।'
असल सवाल- आखिर माजरा क्या है?
ये तब की बात है जब दिवंगत सीताराम केसरी कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष हुआ करते थे। 90 के दशक में ही कांग्रेस ने लालू यादव का साथ देकर उन्हें सत्ता में बने रहने में मदद की। इसके बाद लालू प्रसाद यादव ने जब 1997 में जनता दल से अलग होकर राष्ट्रीय जनता दल बनाया, तब भी सत्ता के लिए कांग्रेस उनके साथ ही रही। कहा जाता है कि धीरे-धीरे इसी तरह से कांग्रेस ने अपने आधार वोट बैंक को खुद ही खुद से दूर कर दिया, जो आज तक लालू यादव के चलते उसके साथ नहीं जुड़े और बीजेपी चले गए।
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