नई दिल्ली: अमेरिका के लोग देश की दिशा और राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कामकाज से बहुत असंतुष्ट हैं। यह नाराजगी अर्थव्यवस्था से लेकर आप्रवासन जैसे अहम मुद्दों तक है। एक नए सर्वे से इसका पता चलता है। यह असंतोष 2026 के मध्यावधि चुनावों से ठीक एक साल पहले सामने आया है। 67% अमेरिकी मानते हैं कि देश 'काफी हद तक गलत रास्ते पर' है। जबकि एक तिहाई से कुछ कम लोग मानते हैं कि यह सही दिशा में आगे बढ़ रहा है। यह आंकड़ा नवंबर 2024 के राष्ट्रपति चुनाव से पहले के 75% की तुलना में थोड़ा सा सुधार दिखाता है। डेमोक्रेट्स (95%) और स्वतंत्र (77%) रिपब्लिकन (29%) की तुलना में कहीं ज्यादा मानते हैं कि अमेरिका गलत दिशा में जा रहा है। अश्वेत (87%), हिस्पैनिक (71%), और एशियाई (71%) अमेरिकी भी श्वेत अमेरिकियों (61%) की तुलना में इस राय को अधिक रखते हैं।   
   
अर्थव्यवस्था और महंगाई लोगों की सबसे बड़ी चिंताएं हैं। ट्रंप के पदभार संभालने के बाद से 52% अमेरिकी मानते हैं कि अर्थव्यवस्था खराब हुई है। जबकि 27% का मानना है कि इसमें सुधार हुआ है। 50,000 डॉलर से कम कमाने वाले लगभग 6 में से 10 लोग मानते हैं कि उनकी वित्तीय स्थिति पहले से खराब है। लगभग 60% लोग मौजूदा महंगाई दर के लिए ट्रंप को जिम्मेदार ठहराते हैं। इनमें से एक तिहाई का मानना है कि इसके लिए वे 'बहुत हद तक' जिम्मेदार हैं। यहां तक कि रिपब्लिकन में भी 5 में से 1 व्यक्ति उन्हें कुछ हद तक जिम्मेदार मानता है। जहां 18% अमेरिकी मानते हैं कि वे ट्रंप के कार्यकाल में आर्थिक रूप से 'बेहतर' हुए हैं। वहीं, 37% कहते हैं कि वे 'बदतर' हुए हैं। 45% का मानना है कि उनकी स्थिति लगभग वैसी ही है।
प्रदर्शन पर बंटी है लोगों की राय
राष्ट्रपति ट्रंप के प्रदर्शन को लेकर लोगों की राय बंटी हुई है। कुल मिलाकर 59% लोग उनके राष्ट्रपति के तौर पर कामकाज से नाखुश हैं। जबकि 41% लोग उनसे खुश हैं। उनकी कड़ी नाराजगी (46%) उनकी कड़ी प्रशंसा (20%) से दोगुनी से भी ज्यादा है। ज्यादातर लोग टैरिफ, अर्थव्यवस्था और संघीय सरकार के प्रबंधन जैसे मुद्दों पर उनके कामकाज से असंतुष्ट हैं। लगभग 6 में से 10 लोग रूस-यूक्रेन संबंधों, आप्रवासन, अपराध और इजरायल-गाजा स्थिति पर उनके नजरिये से भी नाखुश हैं। इजरायल और गाजा पर ट्रंप की रेटिंग सबसे अच्छी है। 46% लोग उनके कामकाज से संतुष्ट हैं, जो सितंबर में 39% से बढ़ा है। लेकिन, अर्थव्यवस्था पर उनकी रेटिंग सबसे कम है, केवल 37% लोग संतुष्ट हैं, जो उनके कार्यकाल में सबसे कमजोर है।
     
ट्रंप की ओर से राष्ट्रपति पद की शक्तियों का विस्तार करने को लेकर भी चिंताएं हैं। सर्वेक्षण में 64% अमेरिकी मानते हैं कि ट्रंप राष्ट्रपति पद की शक्तियों का विस्तार करने में 'बहुत आगे बढ़ रहे हैं'। ज्यादातर लोग मानते हैं कि उन्होंने संघीय कर्मचारियों की छंटनी (57%), अमेरिकी शहरों में नेशनल गार्ड भेजना (55%) और विश्वविद्यालयों में हस्तक्षेप करना (54%) जैसे कामों में भी हद पार की है। लगभग आधे लोग मानते हैं कि ट्रंप ने अवैध अप्रवासियों को निर्वासित करने (50%) और विविधता और समावेशन कार्यक्रमों को समाप्त करने (51%) में भी अपनी सीमाएं लांघी हैं।
   
ग्लोबल लीडरशिप को लेकर भी सवाल
वैश्विक नेतृत्व को लेकर भी अमेरिकी बंटे हुए हैं। लगभग आधे (48%) अमेरिकी मानते हैं कि ट्रंप के कार्यकाल में अमेरिका का वैश्विक नेतृत्व कमजोर हुआ है। जबकि 33% का मानना है कि यह मजबूत हुआ है। लगभग 47% लोग मानते हैं कि वे वैश्विक संकटों पर सही मात्रा में समय देते हैं। लेकिन, 46% सोचते हैं कि वह रूस के प्रति बहुत सहायक हैं। केवल 39% लोग मानते हैं कि ट्रंप को इजरायल-हमास संघर्षविराम के लिए 'बहुत अधिक' या 'अच्छी मात्रा में' श्रेय मिलना चाहिए। जबकि 43% का मानना है कि उन्हें बहुत कम या कोई श्रेय नहीं मिलना चाहिए।
   
राजनीतिक दल आम लोगों से कटे हुए माने जा रहे हैं। एक चौंकाने वाला निष्कर्ष यह है कि 68% अमेरिकी मानते हैं कि डेमोक्रेटिक पार्टी आम लोगों से कटी हुई है। यह संख्या ट्रंप (63%) या रिपब्लिकन पार्टी (61%) से अधिक है।
   
क्या भारत के लिए कुछ बदलेगा?अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की साख में आई कमी का भारत के लिए मिश्रित परिणाम होगा। व्यापार और आर्थिक मोर्चे पर यह सकारात्मक बदलाव ला सकता है। कारण है कि अमेरिकी जनता की महंगाई पर नाराजगी ट्रंप की संरक्षणवादी टैरिफ नीतियों में संभावित नरमी ला सकती है। इससे भारतीय निर्यातकों को ऊंचे अमेरिकी टैरिफ से राहत मिलने और द्विपक्षीय व्यापार समझौते की राह आसान होने की उम्मीद है। हालांकि, अगर अमेरिकी अर्थव्यवस्था जनता के असंतोष के कारण मंदी की ओर बढ़ती है तो भारतीय शेयर बाजार में अस्थिरता आ सकती है। वजह यह है कि विदेशी निवेशक पूंजी निकालेंगे। रणनीतिक मोर्चे पर भारत को कोई बड़ा नुकसान नहीं होगा क्योंकि चीन को संतुलित करने के लिए अमेरिका की भारत पर निर्भरता एक भू-राजनीतिक अनिवार्यता बन चुकी है, चाहे राष्ट्रपति कोई भी हो।
  
अर्थव्यवस्था और महंगाई लोगों की सबसे बड़ी चिंताएं हैं। ट्रंप के पदभार संभालने के बाद से 52% अमेरिकी मानते हैं कि अर्थव्यवस्था खराब हुई है। जबकि 27% का मानना है कि इसमें सुधार हुआ है। 50,000 डॉलर से कम कमाने वाले लगभग 6 में से 10 लोग मानते हैं कि उनकी वित्तीय स्थिति पहले से खराब है। लगभग 60% लोग मौजूदा महंगाई दर के लिए ट्रंप को जिम्मेदार ठहराते हैं। इनमें से एक तिहाई का मानना है कि इसके लिए वे 'बहुत हद तक' जिम्मेदार हैं। यहां तक कि रिपब्लिकन में भी 5 में से 1 व्यक्ति उन्हें कुछ हद तक जिम्मेदार मानता है। जहां 18% अमेरिकी मानते हैं कि वे ट्रंप के कार्यकाल में आर्थिक रूप से 'बेहतर' हुए हैं। वहीं, 37% कहते हैं कि वे 'बदतर' हुए हैं। 45% का मानना है कि उनकी स्थिति लगभग वैसी ही है।
प्रदर्शन पर बंटी है लोगों की राय
राष्ट्रपति ट्रंप के प्रदर्शन को लेकर लोगों की राय बंटी हुई है। कुल मिलाकर 59% लोग उनके राष्ट्रपति के तौर पर कामकाज से नाखुश हैं। जबकि 41% लोग उनसे खुश हैं। उनकी कड़ी नाराजगी (46%) उनकी कड़ी प्रशंसा (20%) से दोगुनी से भी ज्यादा है। ज्यादातर लोग टैरिफ, अर्थव्यवस्था और संघीय सरकार के प्रबंधन जैसे मुद्दों पर उनके कामकाज से असंतुष्ट हैं। लगभग 6 में से 10 लोग रूस-यूक्रेन संबंधों, आप्रवासन, अपराध और इजरायल-गाजा स्थिति पर उनके नजरिये से भी नाखुश हैं। इजरायल और गाजा पर ट्रंप की रेटिंग सबसे अच्छी है। 46% लोग उनके कामकाज से संतुष्ट हैं, जो सितंबर में 39% से बढ़ा है। लेकिन, अर्थव्यवस्था पर उनकी रेटिंग सबसे कम है, केवल 37% लोग संतुष्ट हैं, जो उनके कार्यकाल में सबसे कमजोर है।
ट्रंप की ओर से राष्ट्रपति पद की शक्तियों का विस्तार करने को लेकर भी चिंताएं हैं। सर्वेक्षण में 64% अमेरिकी मानते हैं कि ट्रंप राष्ट्रपति पद की शक्तियों का विस्तार करने में 'बहुत आगे बढ़ रहे हैं'। ज्यादातर लोग मानते हैं कि उन्होंने संघीय कर्मचारियों की छंटनी (57%), अमेरिकी शहरों में नेशनल गार्ड भेजना (55%) और विश्वविद्यालयों में हस्तक्षेप करना (54%) जैसे कामों में भी हद पार की है। लगभग आधे लोग मानते हैं कि ट्रंप ने अवैध अप्रवासियों को निर्वासित करने (50%) और विविधता और समावेशन कार्यक्रमों को समाप्त करने (51%) में भी अपनी सीमाएं लांघी हैं।
ग्लोबल लीडरशिप को लेकर भी सवाल
वैश्विक नेतृत्व को लेकर भी अमेरिकी बंटे हुए हैं। लगभग आधे (48%) अमेरिकी मानते हैं कि ट्रंप के कार्यकाल में अमेरिका का वैश्विक नेतृत्व कमजोर हुआ है। जबकि 33% का मानना है कि यह मजबूत हुआ है। लगभग 47% लोग मानते हैं कि वे वैश्विक संकटों पर सही मात्रा में समय देते हैं। लेकिन, 46% सोचते हैं कि वह रूस के प्रति बहुत सहायक हैं। केवल 39% लोग मानते हैं कि ट्रंप को इजरायल-हमास संघर्षविराम के लिए 'बहुत अधिक' या 'अच्छी मात्रा में' श्रेय मिलना चाहिए। जबकि 43% का मानना है कि उन्हें बहुत कम या कोई श्रेय नहीं मिलना चाहिए।
राजनीतिक दल आम लोगों से कटे हुए माने जा रहे हैं। एक चौंकाने वाला निष्कर्ष यह है कि 68% अमेरिकी मानते हैं कि डेमोक्रेटिक पार्टी आम लोगों से कटी हुई है। यह संख्या ट्रंप (63%) या रिपब्लिकन पार्टी (61%) से अधिक है।
क्या भारत के लिए कुछ बदलेगा?अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की साख में आई कमी का भारत के लिए मिश्रित परिणाम होगा। व्यापार और आर्थिक मोर्चे पर यह सकारात्मक बदलाव ला सकता है। कारण है कि अमेरिकी जनता की महंगाई पर नाराजगी ट्रंप की संरक्षणवादी टैरिफ नीतियों में संभावित नरमी ला सकती है। इससे भारतीय निर्यातकों को ऊंचे अमेरिकी टैरिफ से राहत मिलने और द्विपक्षीय व्यापार समझौते की राह आसान होने की उम्मीद है। हालांकि, अगर अमेरिकी अर्थव्यवस्था जनता के असंतोष के कारण मंदी की ओर बढ़ती है तो भारतीय शेयर बाजार में अस्थिरता आ सकती है। वजह यह है कि विदेशी निवेशक पूंजी निकालेंगे। रणनीतिक मोर्चे पर भारत को कोई बड़ा नुकसान नहीं होगा क्योंकि चीन को संतुलित करने के लिए अमेरिका की भारत पर निर्भरता एक भू-राजनीतिक अनिवार्यता बन चुकी है, चाहे राष्ट्रपति कोई भी हो।
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