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पश्चिम बंगाल, झारखंड और फिर बिहार, बीजेपी को उम्मीद उसका यह मुद्दा करेगा फिर कमाल

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पटना: बिहार में होने वाले विधानसभा चुनावों को लेकर बीजेपी घुसपैठ का मुद्दा जोरशोर से उठा रही है। ऐसा पहली बार है जब बिहार में बीजेपी इस मुद्दे पर इतनी आक्रामक है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह जैसे बड़े नेता भी इस मुद्दे पर बार-बार जोर दे रहे हैं। उनका कहना है कि घुसपैठियों की वजह से बिहार के लोगों के हक मारे जा रहे हैं। बीजेपी को लगता है कि इस मुद्दे को उठाने से उसे विधानसभा चुनाव में फायदा होगा और गैर-अल्पसंख्यक वोट एकजुट हो जाएंगे। यानी वोटों का ध्रुवीकरण हो जाएगा। बीजेपी के नेतृत्व वाले गठबंधन राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) की चुनाव प्रचार की रणनीति भी तैयार कर ली गई है। एनडीए ने चुनाव के लिए नया नारा दिया है- 'रफ़्तार पकड़ चुका बिहार, फिर एक बार एनडीए सरकार।'



बिहार में पहले किसी भी चुनाव में घुसपैठ इतना बड़ा मुद्दा नहीं बना, जितना इस बार बन चुका है। इस राज्य में तो जाति की बातें ज्यादा होती थीं। लेकिन इस बार बीजेपी पश्चिम बंगाल की तरह ही बिहार में भी इस मुद्दे को भुनाना चाहती है। पश्चिम बंगाल में 2021 के चुनावों में बीजेपी ने घुसपैठ का मुद्दा उठाया था। इससे उसे वहां काफी फायदा हुआ था और वह वहां मुख्य विपक्षी पार्टी बनने में सफल हो गई थी।



जोरशोर से उठाया जा रहा घुसपैठ का मुद्दा

पीएम नरेंद्र मोदी ने 15 सितंबर को पूर्णिया में भाषण देते हुए घुसपैठ का मुद्दा उठाया था। उन्होंने सीमांचल क्षेत्र में जनसांख्यिकी में परिवर्तन की बात कही थी। मोदी ने कहा था कि एनडीए सरकार बिहार, पश्चिम बंगाल और असम को घुसपैठियों से मुक्त कराने के लिए दृढ़ संकल्पित है।



गुरुवार को गृह मंत्री अमित शाह ने भी घुसपैठ के मुद्दे पर बात की। उन्होंने कांग्रेस और अन्य विपक्षी पार्टियों पर हमला बोला। उन्होंने कहा कि ये पार्टियां घुसपैठियों को वोटर लिस्ट में शामिल करना चाहती हैं। साथ ही उन्हें सरकारी योजनाओं का फायदा पहुंचा रही हैं। इससे असली बिहारियों का हक मारा जा रहा है।



बंगाल और झारखंड में बीजेपी को मिला था फायदा

बीजेपी पहले झारखंड में 2024 के चुनावों में भी ऐसा कर चुकी है। वहां उन्होंने यह बात फैलाई थी कि घुसपैठियों की वजह से आदिवासियों को फायदे कम मिल रहे हैं। पश्चिम बंगाल में तो अल्पसंख्यक आबादी राज्य के कई हिस्सों में फैली हुई है। लेकिन बिहार में ऐसा नहीं है। बिहार में सीमांचल, सिवान, गोपालगंज और भागलपुर जैसे कुछ ही इलाके हैं जहां अल्पसंख्यक ज्यादा हैं।



सूत्रों की मानें तो बीजेपी को लगता है कि इस मुद्दे को उठाने से उन्हें गैर-अल्पसंख्यक वोट मिलेंगे। यानी मतों का ध्रुवीकरण होगा जिससे एनडीए को चुनाव में फायदा होगा। इसलिए पार्टी के बड़े नेता इस मुद्दे पर जोर दे रहे हैं। इससे साफ है कि आने वाले चुनावों में ये एक बड़ा मुद्दा रहने वाला है। देखना यह है कि बीजेपी का यह दांव बिहार में कितना सफल होता है।



'रफ़्तार पकड़ चुका बिहार...'

बिहार विधानसभा चुनाव के लिए बीजेपी के नेतृत्व वाले सत्ता पक्ष के गठबंधन एनडीए के प्रचार की रणनीति तैयार कर ली गई है। एनडीए ने एक नया नारा दिया है। यह नारा है 'रफ़्तार पकड़ चुका बिहार, फिर एक बार एनडीए सरकार।' इस नारे के साथ एनडीए जनता को बताएगा कि बिहार ने विकास की गति पकड़ ली है। यह भी बताया जाएगा कि एनडीए सरकार फिर से क्यों जरूरी है। सितंबर के अंत तक यह नारा लॉन्च हो जाएगा।



एनडीए सरकार अपनी योजनाओं के बारे में लोगों को बताएगी। इसके लिए एलईडी रथों का इस्तेमाल किया जाएगा। वे मुफ्त बिजली (125 यूनिट तक), पेंशन में वृद्धि (400 से 1100 रुपये), आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के मानदेय में वृद्धि और निर्माण श्रमिकों को एकमुश्त नकद हस्तांतरण जैसी योजनाओं के बारे में बताएंगे।

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