प्रायः देखा जाता है कि किसी की कुण्डली में उत्तम राजयोग रहता है फिर भी वह व्यक्ति दीन-हीन, अभावग्रस्त जीवन यापन कर रहा होता है। फलित ज्योतिष के अनुसार ऐसा भी पाया जाता है कि किसी की जन्मकुंडली में कुछ ग्रह बहुत अच्छी स्थिति में नहीं होते हैं जिनके प्रभाव से उनकी दशा अत्यन्त दीन-हीन होनी चाहिए, फिर भी वह राजयोग का भोग करते हुए पाए जाते हैं। यह सब देखकर ज्योतिष शास्त्र के प्रति अश्रद्धा उत्पन्न हो जाती है, परन्तु यदि नवमांश के प्रयोग में माहिरता हासिल कर ली जाए तो फलकथन सटीक घटित होगा।
भविष्यवाणी में नवमांश कुंडली का विशेष महत्व - ज्योतिष शास्त्र में किसी भी व्यक्ति के जीवन का सटीक और गहराई से अध्ययन करने के लिए केवल जन्मकुंडली ही पर्याप्त नहीं होती। इसके साथ-साथ नवमांश कुंडली का अध्ययन भी अत्यंत आवश्यक है। नवमांश कुंडली यह स्पष्ट करती है कि ग्रहों का बाहरी प्रभाव, जो जन्मकुंडली में दिखता है, वास्तव में आंतरिक रूप से कितना प्रबल या प्रभावशाली है। विद्वान ज्योतिषियों के अनुसार,
स्वोच्चे नीचांश के दुःखी नीचे स्वोच्चांश के सुखी। स्वांशे वर्गोत्तमे भोगी राजयोगी भविष्यति।।
जन्मकुण्डली में ग्रह अपने परमोच्च स्थान में है किन्तु यदि वह अपने नीच राशि के नवमांश में है तो वह व्यक्ति सुखी नहीं बल्कि दुखी ही होगा।
इसी प्रकार कुण्डली में ग्रह अपनी नीच राशि में स्थित है किन्तु यदि वह अपने उच्च नवमांश में है तो वह व्यक्ति सुखी होगा।
कुण्डली के अनुसार यदि किसी को भोगी होना चाहिये किन्तु यदि उसके ग्रह वर्गोत्तम नवमांश में हैं तो वह राजयोगी होगा ।
उच्चांशे स्वनवाशेच जागरूकं बदन्ति हि। सुहृन्नवांशके स्वप्नं सुप्तं नीचारिभांशके।।
कोई भी ग्रह कुण्डली में बुरे-से-बुरे स्थान में भी बैठा हो किन्तु वह यदि अपनी उच्चराशि के नवमांश में या अपनी राशि के नवमांश में है तो वह जागरूक होता है और उत्तम फल देता है।
मित्र ग्रह की राशि के नवमांश में होने पर वह स्वप्नावस्था में होता है और साधारण फल देता है।
यदि वह अपनी नीच राशि के नवमांश में अथवा शत्रु राशि के नवमांश में होता है तो वह सुप्त होता है और अशुभ फल देता है।
इसलिए ज्योतिर्विदों को चाहिए कि लग्न कुण्डली यानि जन्मकुण्डली के साथ-साथ सदैव नवमांश कुण्डली पर विचार अवश्य कर लेना चाहिए। नवमांश कुण्डली अनदर के रहस्यों को उजागर करता है, अंग्रजी में जन्मकुण्डली को डी-1 कहा जाता है और नवमांश कुण्डली को डी-9 कहकर सम्बोधित किया जाता है।
भविष्यवाणी में नवमांश कुंडली का विशेष महत्व - ज्योतिष शास्त्र में किसी भी व्यक्ति के जीवन का सटीक और गहराई से अध्ययन करने के लिए केवल जन्मकुंडली ही पर्याप्त नहीं होती। इसके साथ-साथ नवमांश कुंडली का अध्ययन भी अत्यंत आवश्यक है। नवमांश कुंडली यह स्पष्ट करती है कि ग्रहों का बाहरी प्रभाव, जो जन्मकुंडली में दिखता है, वास्तव में आंतरिक रूप से कितना प्रबल या प्रभावशाली है। विद्वान ज्योतिषियों के अनुसार,
स्वोच्चे नीचांश के दुःखी नीचे स्वोच्चांश के सुखी। स्वांशे वर्गोत्तमे भोगी राजयोगी भविष्यति।।
जन्मकुण्डली में ग्रह अपने परमोच्च स्थान में है किन्तु यदि वह अपने नीच राशि के नवमांश में है तो वह व्यक्ति सुखी नहीं बल्कि दुखी ही होगा।
इसी प्रकार कुण्डली में ग्रह अपनी नीच राशि में स्थित है किन्तु यदि वह अपने उच्च नवमांश में है तो वह व्यक्ति सुखी होगा।
कुण्डली के अनुसार यदि किसी को भोगी होना चाहिये किन्तु यदि उसके ग्रह वर्गोत्तम नवमांश में हैं तो वह राजयोगी होगा ।
उच्चांशे स्वनवाशेच जागरूकं बदन्ति हि। सुहृन्नवांशके स्वप्नं सुप्तं नीचारिभांशके।।
कोई भी ग्रह कुण्डली में बुरे-से-बुरे स्थान में भी बैठा हो किन्तु वह यदि अपनी उच्चराशि के नवमांश में या अपनी राशि के नवमांश में है तो वह जागरूक होता है और उत्तम फल देता है।
मित्र ग्रह की राशि के नवमांश में होने पर वह स्वप्नावस्था में होता है और साधारण फल देता है।
यदि वह अपनी नीच राशि के नवमांश में अथवा शत्रु राशि के नवमांश में होता है तो वह सुप्त होता है और अशुभ फल देता है।
इसलिए ज्योतिर्विदों को चाहिए कि लग्न कुण्डली यानि जन्मकुण्डली के साथ-साथ सदैव नवमांश कुण्डली पर विचार अवश्य कर लेना चाहिए। नवमांश कुण्डली अनदर के रहस्यों को उजागर करता है, अंग्रजी में जन्मकुण्डली को डी-1 कहा जाता है और नवमांश कुण्डली को डी-9 कहकर सम्बोधित किया जाता है।
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