पटना: बिहार की वोटर लिस्ट को लेकर चुनाव आयोग (ECI) ने गुरुवार को सफाई दी है। चुनाव आयोग ने कहा है कि मतदाता सूची में जो 65 लाख का अंतर दिख रहा है, उसके कई कारण हैं। कुछ लोग दूसरे राज्यों में चले गए, कुछ की मौत हो गई और कुछ ने समय पर फॉर्म जमा नहीं किए। आयोग बिहार की वोटर लिस्ट को सुधार रहा है।
बिहार की वोटर लिस्ट के रिवीजन को लेकर विवाद चल रहा है। इस पर चुनाव आयोग ने शुक्रवार को एक प्रेस नोट में विस्तार से सफाई दी। आयोग ने बताया है कि बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के दौरान लगभग 8 करोड़ फॉर्म वितरित किए गए थे। इनमें से 7.24 करोड़ मतदाताओं के फॉर्म जमा हुए।
मतदाताओं के नाम हटने के कई कारण
चुनाव आयोग ने फॉर्म वितरण और उनके संग्रह के बीच अंतर के कारण भी स्पष्ट किए हैं। आयोग के अनुसार, "बीएलओ को ये मतदाता नहीं मिले या उन्हें उनके प्रगणन फॉर्म (Enumeration form) वापस नहीं मिले क्योंकि वे: अन्य राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में मतदाता बन गए, या उनका अस्तित्व नहीं पाया गया, या उन्होंने 25 जुलाई तक फॉर्म जमा नहीं किया, या किसी अन्य कारण से मतदाता के रूप में पंजीकरण करने के इच्छुक नहीं थे।"
आयोग ने फॉर्म वितरण, डाउनलोड, संग्रह और डिजिटलीकरण के आंकड़े भी जारी किए हैं। उसने दैनिक रूप से वितरित, एकत्र और डिजिटाइज्ड प्रगणन फॉर्म का ग्राफिकल डेटा भी शेयर किया है। आयोग के ग्राफ के अनुसार, 65 लाख मतदाताओं का अंतर कई कारणों से है। इनमें 22 लाख मृत व्यक्ति शामिल हैं, 36 लाख लोग या तो बिहार से स्थायी रूप से चले गए हैं या वे मिले ही नहीं। बाकी 7 लाख लोग ऐसे हैं जिनके नाम एक से ज्यादा स्थानों पर दर्ज हैं।
एक सितंबर तक वोटर लिस्ट में जुड़ सकते हैं नाम
चुनाव आयोग के प्रेस नोट के अनुसार, SIR का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि कोई भी योग्य मतदाता छूटे नहीं और कोई भी अयोग्य मतदाता शामिल न हो। आयोग ने कहा है कि यदि कोई योग्य व्यक्ति छूट गया है, तो उसे एक सितंबर 2025 तक मतदाता सूची में वापस जोड़ा जा सकता है।
आयोग ने यह भी कहा है कि बिहार में मसौदा मतदाता सूची को लेकर किसी भी राजनीतिक दल ने कोई दावा या आपत्ति पेश नहीं की है। उसने राजनीतिक दलों से भी इस प्रक्रिया में शामिल होने की अपील की है। आयोग ने 1 अगस्त को बिहार की मसौदा मतदाता सूची प्रकाशित की थी। इसके बाद आयोग ने लोगों से कहा था कि अगर उन्हें कोई गलती दिखती है तो वे अपनी आपत्ति दर्ज करा सकते हैं। आयोग ने बताया कि मसौदा मतदाता सूची के संबंध में शुक्रवार तक मतदाताओं से सीधे 6,257 दावे और आपत्तियां प्राप्त हुई हैं।
बिहार की वोटर लिस्ट के रिवीजन को लेकर विवाद चल रहा है। इस पर चुनाव आयोग ने शुक्रवार को एक प्रेस नोट में विस्तार से सफाई दी। आयोग ने बताया है कि बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के दौरान लगभग 8 करोड़ फॉर्म वितरित किए गए थे। इनमें से 7.24 करोड़ मतदाताओं के फॉर्म जमा हुए।
मतदाताओं के नाम हटने के कई कारण
चुनाव आयोग ने फॉर्म वितरण और उनके संग्रह के बीच अंतर के कारण भी स्पष्ट किए हैं। आयोग के अनुसार, "बीएलओ को ये मतदाता नहीं मिले या उन्हें उनके प्रगणन फॉर्म (Enumeration form) वापस नहीं मिले क्योंकि वे: अन्य राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में मतदाता बन गए, या उनका अस्तित्व नहीं पाया गया, या उन्होंने 25 जुलाई तक फॉर्म जमा नहीं किया, या किसी अन्य कारण से मतदाता के रूप में पंजीकरण करने के इच्छुक नहीं थे।"
आयोग ने फॉर्म वितरण, डाउनलोड, संग्रह और डिजिटलीकरण के आंकड़े भी जारी किए हैं। उसने दैनिक रूप से वितरित, एकत्र और डिजिटाइज्ड प्रगणन फॉर्म का ग्राफिकल डेटा भी शेयर किया है। आयोग के ग्राफ के अनुसार, 65 लाख मतदाताओं का अंतर कई कारणों से है। इनमें 22 लाख मृत व्यक्ति शामिल हैं, 36 लाख लोग या तो बिहार से स्थायी रूप से चले गए हैं या वे मिले ही नहीं। बाकी 7 लाख लोग ऐसे हैं जिनके नाम एक से ज्यादा स्थानों पर दर्ज हैं।
एक सितंबर तक वोटर लिस्ट में जुड़ सकते हैं नाम
चुनाव आयोग के प्रेस नोट के अनुसार, SIR का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि कोई भी योग्य मतदाता छूटे नहीं और कोई भी अयोग्य मतदाता शामिल न हो। आयोग ने कहा है कि यदि कोई योग्य व्यक्ति छूट गया है, तो उसे एक सितंबर 2025 तक मतदाता सूची में वापस जोड़ा जा सकता है।
आयोग ने यह भी कहा है कि बिहार में मसौदा मतदाता सूची को लेकर किसी भी राजनीतिक दल ने कोई दावा या आपत्ति पेश नहीं की है। उसने राजनीतिक दलों से भी इस प्रक्रिया में शामिल होने की अपील की है। आयोग ने 1 अगस्त को बिहार की मसौदा मतदाता सूची प्रकाशित की थी। इसके बाद आयोग ने लोगों से कहा था कि अगर उन्हें कोई गलती दिखती है तो वे अपनी आपत्ति दर्ज करा सकते हैं। आयोग ने बताया कि मसौदा मतदाता सूची के संबंध में शुक्रवार तक मतदाताओं से सीधे 6,257 दावे और आपत्तियां प्राप्त हुई हैं।
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