नई दिल्ली: पाकिस्तान की मक्कारी विश्व विख्यात है। वह किसी का सगा नहीं है। उसे सिर्फ डॉलर दिखते हैं। पाकिस्तान का ये कैरेक्टर बन चुका है। भारत ने जब अमेरिका के महादबाव में भी रूस का साथ नहीं छोड़ा, तब पाकिस्तान ने मौका देखते ही फट पाला बदल लिया। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से उसे जरा सी लिफ्ट क्या मिली, उसने चीन को दुलत्ती मार दी। यह वही चीन है जिसने पाकिस्तान को अरबों का कर्ज देकर डिफॉल्ट होने से बचाया। उसके यहां बंपर निवेश किया। सच तो यह है कि पाकिस्तान कर्ज लेकर हजम करने का माहिर है। अब अमेरिका की गोद में बैठकर वह चीन के साथ भी वही करने की सोच रहा है। हालांकि, पूरे सीन में भारत की एंट्री से सीन चेंज होगा। पाकिस्तान को इस बार धोखा देने की बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है। वह पड़ोस में बैठी दो महाशक्तियों से सात समंदर पार बैठे अमेरिका के भरोसे बैर नहीं ले पाएगा। फिलहाल डॉलर की चमक ने उसकी आंखों पर पट्टी बांध दी है।
चीन का पाकिस्तान में अरबों का निवेश
चीन ने पिछले एक दशक में पाकिस्तान में अरबों डॉलर का निवेश किया है। खासतौर से चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) के जरिये। यह चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) के तहत प्रमुख पहल है। इन निवेशों में हाईवे, बंदरगाह, बिजली संयंत्र और ऊर्जा पाइपलाइन सहित कई इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट शामिल हैं। साथ ही विकास और रक्षा खरीद के लिए भारी कर्ज भी शामिल हैं। चीनी फर्मों ने पाकिस्तान के 80% से ज्यादा सैन्य उपकरण की सप्लाई की है। वहीं, राज्य समर्थित बैंकों ने देश में दीर्घकालिक रणनीतिक और आर्थिक प्रभाव को मजबूत करने के मकसद से 83 अरब डॉलर से ज्यादा का कर्ज दिया है।
हालांकि, पाकिस्तान ने चीन को दगा देकर अमेरिका की ओर रुख किया है। यह बदलाव सैन्य नुकसान, चीनी हथियारों पर से विश्वास उठने और अमेरिकी हथियारों के आकर्षण के कारण हुआ है। पूर्व भारतीय तोपखाना प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल पीआर शंकर ने ये बात कही है। संदीप उन्नीथन के चक्र पॉडकास्ट में शंकर ने कहा कि पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर ने अमेरिका की धरती से भारत को परमाणु धमकी दी। इसे 10 मई को हुए ऑपरेशन सिंदूर के संदर्भ में देखा जाना चाहिए। इस ऑपरेशन में भारत ने पाकिस्तान की वायु रक्षा को पंगु बना दिया। उसकी परमाणु हथियार पहुंचाने की क्षमता को खत्म कर दिया।
मुफ्त का माल खाने के चक्कर में पाकिस्तान
शंकर के अनुसार, अमेरिका पाकिस्तान के जरिये ईरान, अफगानिस्तान, चीन और भारत पर कंट्रोल चाहता है। अमेरिका के दांव बड़े हैं। वाशिंगटन में मुनीर का टारगेट साफ था। उन्हें हथियार चाहिए। उन्हें भारत के खिलाफ गारंटी चाहिए। अमेरिका ने पाकिस्तान पर फिर से प्रभाव डालने का मौका लपक लिया है। उसने राजनयिक कवर, FATF की वॉचलिस्ट से संभावित रूप से हटाने और भविष्य में F-16 तक पहुंच की पेशकश की है। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान एंड-यूजर समझौतों के तहत इन्हें पहले ग्राउंडेड कर दिया गया था।
अमेरिकी सहायता का लालच भी वित्तीय है। शंकर ने कहा, 'चीन के साथ पाकिस्तान को सिर्फ कर्ज मिलेगा जिसे चुकाना होगा। पाकिस्तान किसी को भी चुकाने में दिलचस्पी नहीं रखता है। अगर वह अमेरिका की तरफ जाता है तो उसे कुछ भी भुगतान नहीं करना पड़ेगा। उसे सैन्य हार्डवेयर सहित सब कुछ मुफ्त में मिल जाएगा। अमेरिका के साथ जाने से पाकिस्तान चीन पर कर्ज चुकाने की मांगों को कम करने का दबाव बना सकता है। अब पाकिस्तान चीन से कहेगा, 'मैं तुम्हें चुका दूंगा, लेकिन तुम पहले बाहर निकलो।'
पूर्व जनरल की चीन को बड़ी चेतावनी
जनरल (रिटायर) जीडी बख्शी ने भी चीन को पाकिस्तान के साथ अपने रक्षा और वित्तीय संबंधों के बारे में चेतावनी दी है। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' लिखा, 'पाकिस्तानी जनरलों ने खुशी-खुशी चीन को छोड़ दिया है। चीन ने उन्हें उनके 80% हथियार और 83 अरब डॉलर से ज्यादा का कर्ज दिया है। यह पूरी दुनिया में सबसे अवसरवादी और अविश्वसनीय देश है।' उन्होंने आगे कहा, 'मुझे उम्मीद है कि बीजिंग को यह एहसास होगा कि इससे पहले कि वह पाक नाम के उस विश्वासघाती राज्य में अरबों डॉलर के हथियार और कर्ज डुबो दे, बीजिंग को अपने टॉप कैटेगरी के हथियारों को पाकिस्तान के साथ जोखिम में नहीं डालना चाहिए। यह उनकी प्रतिष्ठा को बर्बाद कर देगा। कारण है कि उसके मदरसा-शिक्षित युवाओं में उन्हें संभालने की तकनीकी विशेषज्ञता की कमी है।'
चीन का पाकिस्तान में अरबों का निवेश
चीन ने पिछले एक दशक में पाकिस्तान में अरबों डॉलर का निवेश किया है। खासतौर से चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) के जरिये। यह चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) के तहत प्रमुख पहल है। इन निवेशों में हाईवे, बंदरगाह, बिजली संयंत्र और ऊर्जा पाइपलाइन सहित कई इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट शामिल हैं। साथ ही विकास और रक्षा खरीद के लिए भारी कर्ज भी शामिल हैं। चीनी फर्मों ने पाकिस्तान के 80% से ज्यादा सैन्य उपकरण की सप्लाई की है। वहीं, राज्य समर्थित बैंकों ने देश में दीर्घकालिक रणनीतिक और आर्थिक प्रभाव को मजबूत करने के मकसद से 83 अरब डॉलर से ज्यादा का कर्ज दिया है।
हालांकि, पाकिस्तान ने चीन को दगा देकर अमेरिका की ओर रुख किया है। यह बदलाव सैन्य नुकसान, चीनी हथियारों पर से विश्वास उठने और अमेरिकी हथियारों के आकर्षण के कारण हुआ है। पूर्व भारतीय तोपखाना प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल पीआर शंकर ने ये बात कही है। संदीप उन्नीथन के चक्र पॉडकास्ट में शंकर ने कहा कि पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर ने अमेरिका की धरती से भारत को परमाणु धमकी दी। इसे 10 मई को हुए ऑपरेशन सिंदूर के संदर्भ में देखा जाना चाहिए। इस ऑपरेशन में भारत ने पाकिस्तान की वायु रक्षा को पंगु बना दिया। उसकी परमाणु हथियार पहुंचाने की क्षमता को खत्म कर दिया।
मुफ्त का माल खाने के चक्कर में पाकिस्तान
शंकर के अनुसार, अमेरिका पाकिस्तान के जरिये ईरान, अफगानिस्तान, चीन और भारत पर कंट्रोल चाहता है। अमेरिका के दांव बड़े हैं। वाशिंगटन में मुनीर का टारगेट साफ था। उन्हें हथियार चाहिए। उन्हें भारत के खिलाफ गारंटी चाहिए। अमेरिका ने पाकिस्तान पर फिर से प्रभाव डालने का मौका लपक लिया है। उसने राजनयिक कवर, FATF की वॉचलिस्ट से संभावित रूप से हटाने और भविष्य में F-16 तक पहुंच की पेशकश की है। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान एंड-यूजर समझौतों के तहत इन्हें पहले ग्राउंडेड कर दिया गया था।
अमेरिकी सहायता का लालच भी वित्तीय है। शंकर ने कहा, 'चीन के साथ पाकिस्तान को सिर्फ कर्ज मिलेगा जिसे चुकाना होगा। पाकिस्तान किसी को भी चुकाने में दिलचस्पी नहीं रखता है। अगर वह अमेरिका की तरफ जाता है तो उसे कुछ भी भुगतान नहीं करना पड़ेगा। उसे सैन्य हार्डवेयर सहित सब कुछ मुफ्त में मिल जाएगा। अमेरिका के साथ जाने से पाकिस्तान चीन पर कर्ज चुकाने की मांगों को कम करने का दबाव बना सकता है। अब पाकिस्तान चीन से कहेगा, 'मैं तुम्हें चुका दूंगा, लेकिन तुम पहले बाहर निकलो।'
पूर्व जनरल की चीन को बड़ी चेतावनी
जनरल (रिटायर) जीडी बख्शी ने भी चीन को पाकिस्तान के साथ अपने रक्षा और वित्तीय संबंधों के बारे में चेतावनी दी है। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' लिखा, 'पाकिस्तानी जनरलों ने खुशी-खुशी चीन को छोड़ दिया है। चीन ने उन्हें उनके 80% हथियार और 83 अरब डॉलर से ज्यादा का कर्ज दिया है। यह पूरी दुनिया में सबसे अवसरवादी और अविश्वसनीय देश है।' उन्होंने आगे कहा, 'मुझे उम्मीद है कि बीजिंग को यह एहसास होगा कि इससे पहले कि वह पाक नाम के उस विश्वासघाती राज्य में अरबों डॉलर के हथियार और कर्ज डुबो दे, बीजिंग को अपने टॉप कैटेगरी के हथियारों को पाकिस्तान के साथ जोखिम में नहीं डालना चाहिए। यह उनकी प्रतिष्ठा को बर्बाद कर देगा। कारण है कि उसके मदरसा-शिक्षित युवाओं में उन्हें संभालने की तकनीकी विशेषज्ञता की कमी है।'
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