नई दिल्ली, 21 अगस्त (Udaipur Kiran) । रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) ने आम लोगों से इस बारे में राय मांगी कि मौद्रिक नीति के लिए खुदरा महंगाई का चार फीसदी का लक्ष्य ही उपयुक्त रहेगा या बदलते वैश्विक-घरेलू परिदृश्य में नए मानदंड तय करने की जरूरत है। रिजर्व बैंक ने विभिन्न पक्षों से इस पर 18 सितंबर, 2025 तक सुझाव आमंत्रित किए हैं।
आरबीआई ने गुरुवार को एक चर्चा पत्र जारी कर चार प्रमुख सवालों पर राय मांगी है। इसमें प्रमुख सवाल यह है कि मौद्रिक नीति का मार्गदर्शन मुख्य महंगाई यानी मुद्रास्फीति से होना चाहिए या सकल मुद्रास्फीति से। आरबीआई जानना चाहता है कि चार फीसदी का लक्ष्य अब भी वृद्धि और स्थिरता में संतुलन बनाने के लिए उपयुक्त है या नहीं।
इसके साथ ही रिजर्व बैंक ने लक्ष्य के प्रति दो फीसदी घट-बढ़ वाली संतोषजनक स्थिति का दायरा बदले जाने और निर्धारित लक्ष्य को हटाकर सिर्फ एक दायरा ही रखे जाने पर लोगों से राय मांगी गई है। रिजर्व बैंक के चर्चा पत्र में कहा गया है, ‘‘अब तक का अनुभव व्यापक रूप से सकारात्मक रहा है।
आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की समीक्षा बैठक में खुदरा महंगाई के आंकड़ों को मुख्य तौर पर ध्यान में रखते हुए अपनी मौद्रिक नीति तय करती है। भारत ने वर्ष 2016 में सरकार और आरबीआई के बीच मौद्रिक नीति रूपरेखा समझौते के बाद लचीली मुद्रास्फीति लक्ष्य प्रणाली को अपनाई थी। इसके तहत ही उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) आधारित खुदरा मुद्रास्फीति को चार फीसदी पर रखने का लक्ष्य तय किया गया, जिसमें दो फीसदी घट-बढ़ की छूट दी गई थी। यह मौजूदा व्यवस्था 2026 तक लागू है।
आरबीआई ने जारी बयान में कहा कि पिछले नौ वर्षों के अनुभव में शुरुआती तीन और हाल के तीन साल निर्धारित लक्ष्य के अनुरूप ही रहे। लेकिन बीच के वर्षों में कोरोना महामारी और रूस-यूक्रेन युद्ध जैसे झटकों के कारण महंगाई की दर ऊपरी दायरे के करीब रही। रिजर्व बैंक के मुद्रास्फीति लक्ष्य प्रणाली के इस साल 35 वर्ष पूरे हो रहे हैं। इसे सबसे पहले 1990 में न्यूजीलैंड ने अपनाया था और तब से यह विश्वस्तर पर सबसे अधिक मान्य मौद्रिक नीति ढांचा बन चुका है।
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(Udaipur Kiran) / प्रजेश शंकर
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