भोपाल, 1 नवंबर (Udaipur Kiran) . हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का अत्यंत विशेष महत्व माना गया है. हर महीने के कृष्ण और शुक्ल पक्ष की एकादशी को व्रत रखा जाता है. इस प्रकार एक वर्ष में कुल 24 एकादशी व्रत पड़ते हैं. इन सभी व्रतों में भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की आराधना की जाती है. इन्हीं में से एक महत्वपूर्ण व्रत है देवउठनी एकादशी या देवोत्थान एकादशी, जिसे देव प्रबोधिनी एकादशी भी कहा जाता है. यह तिथि विशेष रूप से इसलिए पावन मानी जाती है क्योंकि इसी दिन भगवान विष्णु चार महीने की योगनिद्रा से जागकर सृष्टि का पुनः संचालन प्रारंभ करते हैं. इस दिन चातुर्मास की अवधि समाप्त होती है और शुभ व मांगलिक कार्यों का आरंभ दोबारा संभव हो जाता है.
देवउठनी एकादशी तिथि और समय
इस संबंध में पं. भरत शास्त्री ने जानकारी दी कि वैदिक पंचांग के अनुसार, कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि आज Saturday को 1 नवंबर, मनाई जा रही है. यह तिथि सुबह 09 बजकर 11 मिनट पर प्रारंभ होकर दो नवंबर को सुबह 07 बजकर 31 मिनट पर समाप्त होगी. चूंकि उदया तिथि 1 नवंबर को है, इसलिए देवउठनी एकादशी का व्रत इसी दिन रखा जाएगा. उन्होंने बताया कि व्रत का पारण द्वादशी तिथि को किया जाता है. इस बार पारण का समय दो नवंबर को दोपहर एक बजकर 11 मिनट से 03 बजकर 23 मिनट तक रहेगा. इस अवधि में व्रत का समापन किया जा सकता है. सूर्योदय के बाद भी पारण संभव है; उस दिन सूर्योदय का समय 06 बजकर 34 मिनट रहेगा.
इनका कहना यह भी है कि देवउठनी एकादशी भगवान विष्णु के जागरण का पर्व है, यह मानव जीवन में शुभारंभ और नवऊर्जा का प्रतीक भी है. इस दिन किए गए व्रत, पूजा और दान से व्यक्ति को असीम पुण्य की प्राप्ति होती है. यह एकादशी हर भक्त के लिए आध्यात्मिक उत्थान और शुभ फल प्रदान करने वाली मानी जाती रही है.
देवउठनी एकादशी पूजा और व्रत विधि
देवउठनी एकादशी के दिन प्रातः स्नान कर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है. भगवान विष्णु के चरणों में तुलसी दल अर्पित करना इस दिन अत्यंत शुभ माना जाता है. पूजा के लिए विष्णु भगवान की शालिग्राम रूप में आराधना कर दीप, धूप, पुष्प, फल, तुलसी और पंचामृत से अभिषेक किया जाता है.
व्रत के नियमों को लेकर पं. ब्रजेशचंद्र दुबे का कहना है कि व्रत के दिन सात्त्विक भोजन का ही सेवन करें. तामसिक भोजन, लहसुन, प्याज और चावल का सेवन वर्जित है. व्रत करने वाले को काले या गहरे रंग के वस्त्र नहीं पहनने चाहिए. घर और पूजा स्थल की साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें, क्योंकि माता लक्ष्मी का वास स्वच्छता में होता है. व्रत का पारण द्वादशी तिथि को नियत समय में करें. पारण के बाद अन्न, वस्त्र या धन का दान करना अत्यंत शुभ माना गया है. ऐसा करने से सुख, समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है.
देवउठनी एकादशी पूजन मुहूर्त (1 नवंबर 2025):
ब्रह्म मुहूर्त: 04:50 एएम – 05:41 एएम
अभिजित मुहूर्त: 11:42 एएम – 12:27 पीएम
विजय मुहूर्त: 01:55 पीएम – 02:39 पीएम
गोधूलि मुहूर्त: 05:36 पीएम – 06:02 पीएम
अमृत काल: 11:17 एएम – 12:51 पीएम
रवि योग: 06:33 एएम – 06:20 पीएम
इनमें से कोई भी मुहूर्त पूजा और विष्णु आराधना के लिए शुभ माना गया है.
भगवान विष्णु के प्रमुख मंत्र
व्रत और पूजन के समय भगवान विष्णु के निम्न मंत्रों का जप करने से मन को शांति और पुण्य की प्राप्ति होती है;
1. विष्णु ध्यान मंत्र:
“शान्ताकारम् भुजगशयनम् पद्मनाभम् सुरेशम्,
विश्वाधारम् गगनसदृशम् मेघवर्णम् शुभाङ्गम्.
लक्ष्मीकान्तम् कमलनयनम् योगिभिर्ध्यानगम्यम्,
वन्दे विष्णुम् भवभयहरम् सर्वलोकैकनाथम्॥”
2. महामंत्र:
“ॐ नमो भगवते महासुदर्शनाय वासुदेवाय धन्वंतरायेः,
अमृतकलश हस्ताय सर्व भयविनाशाय सर्व रोगनिवारणाय,
त्रिलोकपथाय त्रिलोकनाथाय महाविष्णुस्वरूपाय नमः.”
देवउठनी एकादशी का धार्मिक महत्व
पुराणों के अनुसार, चातुर्मास के दौरान भगवान विष्णु क्षीरसागर में योगनिद्रा में चले जाते हैं. इस अवधि में विवाह, गृहप्रवेश या अन्य मांगलिक कार्य नहीं किए जाते. देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु जागते हैं, जिससे शुभ कार्यों का पुनः आरंभ संभव होता है. इस दिन तुलसी विवाह का विशेष महत्व है. भगवान विष्णु (शालिग्राम) और तुलसी माता का विवाह कर भक्त पुण्य लाभ प्राप्त करते हैं. धार्मिक मान्यता के अनुसार, देवउठनी एकादशी का व्रत करने से जीवन में सुख, समृद्धि और शांति आती है. इस व्रत से व्यक्ति के सभी पापों का नाश होता है और वह मोक्ष की प्राप्ति करता है.
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(Udaipur Kiran) / डॉ. मयंक चतुर्वेदी
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