उत्तरकाशी, 17 जुलाई (Udaipur Kiran) । 3800 मीटर की ऊंचाई पर स्थित उच्च हिमालय क्षेत्र भारत-चीन सीमा से सटे जांदूग गांव में भी हरेला पर्व की धूम रही है।
यह गांव उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में स्थित है और जाड़ समुदाय का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। हरेला पर्व, जो कि उत्तराखंड का एक प्रमुख त्योहार है, इस गांव में भी उत्साह के साथ मनाया जाता है, जहां लोग अपने रीति-रिवाजों और पारंपरिक उत्सवों का आयोजन करते हैं।
गौरतलब है कि इस वर्ष वृक्षारोपण के महत्व को देखते हुए हरेला पर्व हरेला का पर्व मनाओ, धरती मां का ऋण चुकाओं, एक पेड़ मां के नाम थीम पर मनाया जा रहा है। एक महिने तक यह अभियान जारी रहेगा। इस बार जनपद में सवा दो लाख पौधरोपण का लक्ष्य रखा गया है।
सरकार द्वारा पर्यावरण संरक्षण और हरियाली को बढ़ावा देने के उद्देश्य से उत्तराखंड का लोकपर्व हरेला की शुरुआत बुधवार को प्रदेशभर में कर दी गई है। हरेला पर्व जिले के विभिन्न सरकारी एवं गैर सरकारी स्कूलों समेत अनेक सामाजिक संगठनों ने इस अभियान में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने और अपने आसपास अधिक से अधिक पौधे लगाने और पर्यावरण संरक्षण व संवर्धन को बढ़ाने का संकल्प लिया है। वहीं बगौरी के पूर्व प्रधान भगवान सिंह ने बताया कि जांदूग गांव में भी हरेला पर्व पर वृक्षारोपण कर पर्यावरण संरक्षण का संदेश दिया गया है
जादुंग को पर्यटन स्थल के रूप में किया जा रहा विकसित
उत्तराखंड पर्यटन विकास बोर्ड (यूटीडीबी) ने जांदूग को उत्तराखंड का अगला पर्यटन स्थल घोषित किया है। यह उत्तरकाशी का एक पुराना सीमावर्ती गांव है और तिब्बत सीमा से सटा पहला गांव भी है।
दरअसल वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम के तहत सीमावर्ती गांवों की सूरत बदलने की योजना तैयार की गई है। इसके तहत ही अब भारत चीन सीमा पर बने नेलांग और जादूंग गांव को फिर से बसाया जा रहा है।
इसके साथ ही, जांदूग उन पांच गांवों में से पहला बन गया है जिनका पुनर्वास की कवायद तेज हो चुकी है और इसे ट्रैकिंग, खगोल पर्यटन, प्रकृति शिविर, लंबी पैदल यात्रा आदि के लिए एक स्थायी पर्यटन स्थल के रूप में भी विकसित किया जा रहा है।
बता दें कि
1962 से पहले उत्तरकाशी जिले में चीन सीमा पर स्थित नेलांग गांव में करीब 40 परिवार और जादूंग गांव में करीब 30 परिवार निवास करते थे।उनका मुख्य व्यवसाय कृषि एवं भेड़पालन था। 1962 में भारत चीन युद्ध के दौरान जादुंग गांव को खाली करवा गया था। जादुंग गांव के अधिकांश निवासी इस युद्ध के दौरान विस्थापित हो गए थे।
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(Udaipur Kiran) / चिरंजीव सेमवाल
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