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क्या वो घर अब भी चीखता है? 2008 की वो खौफनाक रात जब एक बेटी ने पूरे परिवार को कुल्हाड़ी से काट डाला!

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उत्तर प्रदेश के हसनपुर में एक ऐसा घर है, जो आज भी चुपचाप उस रात की दर्दभरी कहानी सुना रहा है। 14 अप्रैल 2008 को शबनम ने अपने प्रेमी सलीम के साथ मिलकर अपने ही परिवार के सात लोगों की बेरहमी से हत्या कर दी थी। मां-बाप, भाई-भाभी, छोटा भाई, चचेरी बहन और सिर्फ 10 महीने के भतीजे की जान लेने वाली इस घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया। आज हम आपको उस घर के अंदर की झलक और परिवार की कब्रों की कहानी दिखा रहे हैं, जो इतने सालों बाद भी रहस्य और दर्द से लबरेज हैं।

वो रात, जब घर बन गया कब्रिस्तान

बावनखेड़ी गांव का वो मकान अब पूरी तरह सुनसान पड़ा है। दीवारों पर वक्त की धूल चढ़ी हुई है और खिड़कियां उदासी से ताक रही हैं। उस रात शबनम और सलीम ने कुल्हाड़ी से अपने परिवार पर हमला किया था। खून से रंगी वो जगह आज भी लोगों के लिए डर का कारण बनी हुई है। घर के अंदर का नजारा अब वैसा नहीं है, लेकिन locals बताते हैं कि वहां की हवा में अभी भी एक अजीब-सी खामोशी और भारीपन महसूस होता है। कोई इसे भूतिया कहता है, तो कोई उस रात की क्रूरता को याद करके सिहर जाता है।

कब्रें जो चीखती हैं इंसाफ की गुहार

घटना के बाद शबनम के परिवार को गांव के कब्रिस्तान में दफनाया गया। सात कब्रें, एक के बाद एक, आज भी उस बेरहम हकीकत की गवाही दे रही हैं। इनमें सबसे छोटी कब्र उस 10 महीने के मासूम की है, जिसकी जान बख्शने की कोई जगह शबनम ने नहीं छोड़ी। कब्रों पर उगी घास और फीके पड़ चुके पत्थर इस बात के सबूत हैं कि समय भले ही आगे बढ़ गया हो, लेकिन दर्द अभी भी वहीं रुका हुआ है। आसपास के लोग इन कब्रों को देखकर कहते हैं कि ये सिर्फ मिट्टी के ढेर नहीं, बल्कि एक परिवार की अधूरी कहानी हैं।

शबनम की सजा और सवालों का सिलसिला

शबनम को इस भयानक अपराध के लिए फांसी की सजा सुनाई गई, लेकिन वो अभी भी जेल में है। उसकी दया याचिका पर फैसला अब तक लंबित है, जिसने इस मामले को फिर से सुर्खियों में ला दिया है। क्या एक बेटी अपने पूरे परिवार को खत्म कर सकती है? क्या प्यार इतना अंधा हो सकता है? ये सवाल आज भी लोगों के दिमाग में घूमते हैं। शबनम का घर और कब्रें अब एक सबक बन चुके हैं, जो समाज को सोचने पर मजबूर करते हैं कि रिश्तों की कीमत क्या है और गुस्सा कितना खतरनाक साबित हो सकता है।

आज का बावनखेड़ी और उस रात की छाया

आज बावनखेड़ी गांव में जिंदगी सामान्य लगती है, लेकिन शबनम का घर वहां के लोगों के लिए एक काला धब्बा है। बच्चे उस रास्ते से गुजरते हुए डरते हैं, और बड़े उस रात को भूलने की कोशिश करते हैं। घर अब खंडहर बनने के कगार पर है, लेकिन उसकी दीवारें और कब्रें उस डरावने हादसे को जिंदा रखती हैं। ये कहानी सिर्फ एक अपराध की नहीं, बल्कि इंसानी रिश्तों के टूटने और पछतावे की भी है।

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